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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

करवा चौथ


करवा चौथ 
 
इस करवा चौथ
नहीं महसूस हुई तुम्हारी कमी
एक रात पहले ही भर जो लिए थे
बहुत से टिमटिमाते तारे आँखों में
न भूख, न प्यास,
न व्यथा, न प्रतीक्षा.
महसूस करती रही
हर टिमटिमाते तारे में तुम्हें
दिन भर जगमगाती रही
उसी प्रकाश में मैं
तारों ने भी अच्छी दोस्ती
कर ली थी एक दूसरे से
जानते हो फिर क्या हुआ
शाम होते ही एक दूसरे का हाथ थाम
आपस में मिल गए सब
और मेरे लिए मात्र मेरे लिए
बना दिया एक बड़ा सा चाँद
फिर क्या था
भरपूर निहारा उसे, पूजा उसे, 
गले से लगाया उसे
अब आसमान में चाँद
निकले न निकले... 

रविवार, 4 सितंबर 2011

अहाता


अहाता
  

  
यादों के अहाते में उजड़ने बसने के कई किस्से हैं 
अवसाद  कि कहीं खाई, कहीं खुशियों के टीले हैं

गिरती हुईं दीवारें, कहीं छत से झड़ते पलस्तर हैं 
मिश्री सी मीठी बातें कहीं स्वर कर्कश और कंटीले हैं 

उम्मीद के दरख्तों से झूलती खुशामद की लताएँ है 
कहीं मायूसी के झाडों पे मुरझाये फूल पीले हैं 

चलती हूँ अकेले फिर भी साथ में कोई... है
लगता है उस पल, दिन कितने नशीले हैं

आँखों के जुगुनुओं से, दिखता अर्श का नज़ारा है
जिधर भी देखो मन को दिखती कंदीलें ही कंदीलें हैं 

उस सिसकती माटी की, अपनी अलग कहानी है 
वहाँ दफ़न कई वादे किसी के, आज भी सीले है    

इक मोड पे ठहरी हूँ, दिखती मुझे मंजिल है
मेरे घर से मंजिल का सफर उफ्फ्फ...रस्ते पथरीले हैं 

हर ओर कीचड़ है ज़मीं पे, चाँद  तारे भी भीगे हैं  
ये सब बारिश से नहीं मेरे आंसुओं से गीले हैं  

यादों के अहाते में उजड़ने बसने के कई किस्से हैं 
अवसाद  कि कहीं खाई, कहीं खुशियों के टीले हैं.

रविवार, 16 जनवरी 2011

खबर

 खबर


आसमान में आज परिंदों की खूब आवा-जाई है
वहां पे उन्होंने खूब खलबली मचाई है.
सूरज, चाँद, तारे, आसमान, बदली, जिसको देखो
सबके चेहरे पे उड़ती दिखी हवाई हैं.

जाने कैसे हैं ये परिंदे देखो,
कैसी कैसी बातें यहाँ वहां उड़ाई हैं.
"कल सूरज को बदली खा जाएगी".
बदली खूब खिल खिल के खिलखिलाई है.

"आज ये बादल फटेगा यहीं कहीं"
बादल के माथे पे लकीरें छ्नछ्नाई हैं.
"आज प्यार में वो आसमान के तारे तोड़ लायेगा"
तारों ने जान बचाने को होड़ लगाई है.

"चाँद पे अब इंसान घर बनाएगा"
चाँद ने कर ली अपने सर की धुनाई है.
"वो बचाने को जान अपनी धरती आसमान एक करेगा"
धरती आसमान की आपस में ठनठनाई है.

"राज़ खुला तो आसमान टूट पड़ेगा"
आसमान ने शुरू कर दी छुपन छुपाई है.
चाहती हूँ, कह दूँ, गलती से सही,
ये मुसीबत मेरी ही कराई धराई है.

आ गए प्रधान सम्पादक तभी, बोले,
हमने सबसे ऊँची छलांग लगाई है.
अंबर तक खब............रें
सिर्फ प्रिंट मीडिया ने पहुंचाई हैं.

सोचती हूँ, बता दूँ, सच सबको,
कल जब से अखबार की पतंगें बना
आसमान में ऊँची उड़ाई हैं.
पढ़-पढ़ कर परिंदों ने इक इक खबर,

पूरे आकाश में सुनाई हैं.
तभी से
सूरज, चाँद, तारे, आसमान, बदली, जिसको देखो,
सबके चेहरे पे उड़ती दिखी हवाई हैं.


रविवार, 25 अप्रैल 2010

विस्तार

विस्तार





मेरे नैनों के नीलाभ व्योम में,

एक चन्दा, एक बदली और

कुछ झिलमिल तारे रहते हैं.

सावन में,

जब घनघोर घटायें उमड़ घुमड़ कर,

आँखों में खो जाती हैं.

चन्दा, तारे सो जाते हैं.

वर्षों मरु थे, जो पोखर सारे,

स्वयमेव ही भर जाते हैं.

कभी शीत बहे तो,

चंदा, तारे ओढ़ दुशाला,

लोचन में सो जाते हैं.

दिग्भ्रमित हुए कुछ खग विहग.

जब दृग में वासंत मनाते हैं.

उषा किरण  की रक्तिम डोरें,

जाने अनजाने,

नख में उलझाते जाते हैं.

तब पलकों की झालर के कोनें  ,

आप ही खुल जाते हैं.

ओस के मोती सरक - सरक कर,

आंचल में भर जाते हैं.

गर्मी की,

तपती रातों में चख में खर उग आते हैं.

भीष्म की सी शर शैय्या में,

तब चंदा तारे अकुलाते हैं.

जाने क्या कुछ खोया मैंने,

ये झिलमिल तारे पाने को.

पर सावन रहा सदा नयनों में,

जाने क्यों मधुमास न आया.

अम्बर रहा सदा अंखियों में,

पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!

मैंने क्यों विस्तार न पाया!!
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