गुरुवार, 23 जून 2022

अथ श्री बुलडोज़र कथा

चेतावनी: इस पोस्ट में योगी जी का न तो हाथ है न ही दिमाग इसलिए कृपया MYogiAdityanath योगी जी जैसे अनुभवहीन को इससे जोड़ कर न देखा जाए।

🤭🤪
समय के साथ सोच, शब्द, भावनायें और उनकी परिणति ही नहीं बदली बल्कि तेजी से बदलते समय, मशीनीकरण और मानसिकता से प्रेम भी अछूता नहीं रहा है। अभी तक शब्दों और भावनाओं का मानवीयकरण हो रहा था पर आज यहां शब्दों, भावनाओं और मुहावरों का मानवीयकरण न होकर मशीनीकरण होगा। आज के घोर मशीनीकरण और घनघोर टीवीकरण के कर्कश, कर्णकटु स्वर 🥺 🥺 के प्रदूषण से उपजी एक अनोखी, अनहोनी सी प्रेम कथा प्रस्तुत है यहां।
जैसे हर प्रेम कहानी में होता है, "प्रेम कहानी में एक लड़का होता है एक लड़की होती है कभी दोनों हंसते हैं कभी दोनों रोते हैं" 🎊 । पर मशीनीकरण के युग में आप कहेंगे कि जरूरी तो नहीं कि "एक लड़का हो और एक लड़की ही हो" 🧑‍🤝‍🧑, 👭,पर यकीन मानिए मेरी इस प्रेम कहानी में निश्चित रूप में एक लड़का है और एक लड़की है 👫 । अब देखें कि एक सामान्य प्रेमी युगल के जीवन में "प्रेम की परिणति" से पहले क्या क्या पायदान आते हैं। उनकी सोच, संवेदनाएं, भावनाएं कैसे व्यक्त होती हैं मेरे अंदाज में औए मशीनीकरण के प्रभाव में⚙️
तो होता यूं है कि एक प्रेमी युगल जो बहुत समय से अथाह व अगाथ प्रेम में एक दूसरे से मिल रहे थे, एक दिन प्रेमिका बीमार होने पर भी प्रेमी के विशेष अनुरोध पर उससे मिलने पहुंची तो पहुंचने पर होता क्या है? होता कुछ नहीं है बस तूफानी मशीनीकरण!👀 🛠️⚒️






प्रेमिका चलते चलते थक जाती है, पैरों में सूजन आ जाती है। वह एक जगह बैठ जाती है, पैरों के दर्द के बारे में सोच कर उसे लगता है जैसे किसी ने उसके "पैरों में बुल्डोजर बांध दिए है" ("पैरों में पत्थर बांध दिए है")। प्रेमिका बहुत देर तक प्रेमी की राह देखती है और उसके ना आने पर जब दिल आशंकित हो जाता है, तब उसे ऐसा लगता है जैसे उसके "कलेजे पर बुल्डोजर लोट गया हो" ("कलेजे पर सांप लोट गया हो") फिर भी "दिल पर बुल्डोजर रख कर" ("दिल पर पत्थर रख कर") वो प्रतीक्षा करती है। काफी इंतजार करने के बाद प्रेमी आता है। पर प्रेमिका व्यथित है 😔😌उसे खुश करने के लिए प्रेमी कह उठता है कि जब जब तुम मुस्कुराती हो "हंसती हो तो बुल्डोजर झड़ते हैं" (हंसती हो तो फूल झड़ते हैं") फिर क्या था प्रेमिका खिलखिला पड़ती है😁😁 और प्रेमी से कहती है कि आज घर जाकर मैं सबको अपने प्रेम के बारे में बता दूंगी। घर पहुंच कर वो अपने घर वालों को अपने प्रेम प्रसंग के बारे में बताती है तो शुरू हो जाता है उलाहनों का दौर🥺, कि तुम्हें "छाती पर बुलडोजर दलने के लिए" 🥺("छाती पर मूंग दलने के लिए") पैदा किया था। तुम्हारी "अकल पर बुल्डोजर पड़े हैं" 🥺("अकल पर पत्थर पड़े हैं")। शादी क्या "बुल्डोजर का खेल है" ("बच्चों का खेल है")। या तुमने एक "बुल्डोजर की लकीर खींच दी है"😵‍💫 ("पत्थर की लकीर खींच दी है") और यदि हां, तो हम भी "ईट का जवाब बुल्डोजर से" देंगे🙆 ("ईट का जवाब पत्थर से देंगे") और "तुम्हें छठी का बुलडोजर याद दिला देंगे 🥺 ("तुम्हें छठी का दूध") और अगर किसी भी तरह से घर वालों का "पत्थर का दिल बुल्डोजर हो गया" (जी कड़ा कर लिया)🤐 तो गए काम से और यही कहीं "बुल्डोजर का दिल मोम हो गया" ("पत्थर का दिल मोम") 🤗और वो मान गए और रिश्ता ब्याह तक पहुंचा तो आजकल जैसे कार्ड छपते हैं📒। हर समारोह की अलग व्याख्या और कपड़ों का रंग। जैसे हल्दी के लिए पीला पर पीला भी कैसा "बुल्डोजरी पीला"🏷️। फिर बाजार से दो दिन में ही पीला रंग "बुल्डोजरी पीले" के नाम पर गायब हो जायेगा। अब तो आप समझ ही गए होंगे की बुलडोजर और पीला एक दूसरे के पर्याय हैं, तो हाथ पीला करने को लिखेंगे की अमुक तारीख को अमुक दिन मेरी बेटी के "हाथ बुलडोजरी किए जायेंगे"।
अब आगे आप को सोचना है कि उन हाथों से कब कब, कैसे कैसे, किसकी किसकी बखिया उधेड़ी जायेगी।
पर मेरी बखिया उधेड़ने का प्रयास हरगिज न करें क्योंकि मेरा नाम है
रचना दीक्षित बुलडोजरी📝📝
"अपना काम मैने दिया है कर, बाकी बचा करेगा बुलडोजर"
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