और भी गम हैं ज़माने में ....
बिना अंकों के गणित और पंचांग के
नक्षत्रों की चाल और राशियां
लग चुकी है ढाई महीने की ढहिया,
हो चूका है शुरू नगद नारायण उत्सव,
खिंची है बीचों बीच एक स्पष्ट रेखा,
एक ओर हैं आम जनता
तो दूसरी ओर है एक विशिष्ट समुदाय
बढ़ने वाला है जनता का मान, सम्मान, धन धान्य
बीमार को मिलेगी बिन मांगे दवा, तीमार को दारु
हर तरफ बस जश्न ही जश्न.
कुछ दिन का तूफ़ान फिर सब कुछ शांत.
न जाने फिर कब लगेगी ढहिया
पर जनता की साढ़े-साती तय है.
आम जनता पुलिस के खोजी कुत्तों की तरह नाकाम
सूंघती फिरेगी विशिष्ट समुदाय का पता
वहीँ बंद कमरों में
पिछली ढहिया में हुए नुकसान की भरपाई की जुगत
में होगा विशिष्ट समुदाय.