दूजा ब्याह
शब्द का कलम से जब ब्याह हुआ था
मैं साक्षी थी और समाज साथ खड़ा था
हुए सातों वचन थे पूरे और सेंधुर दान हुआ था
आँखों ही आँखों में प्यार का इज़हार किया था,
कलम ने फिर शब्द के माथे पे प्यार किया था
सुहाग रात को सुखद स्पर्श का अहसास भी दिया था,
खुश हो गए दोनों खुश हाल हो गए
कलम फिसल कर, कभी शब्दों की बाहों में होता था
शब्द पिघल कर, कभी कलम की आग़ोश में होता
तकनीक की लगी नज़र हाय! ये क्या हो गया,
दूरियां बढ़ने लगीं, कोई गुनाह हो गया
हुआ कलम को संदेह, रिश्ता स्याह हो गया,
पीछा किया तो दर्द का दीदार हो गया
नजदीक जाके देखा तो बेज़ार हो गया,
एकांत था और खट-खट की आती थीं आवाजें
कोई प्यार से शब्द पे फिराता था उंगलियाँ,
दिल टूट गया उसका बैरागी हो गया
शब्द का फिर, कीबोर्ड से दूजा ब्याह हो गया.
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