विषय
बचपन में सोचा करती थी पढते समय
क्यों होते हैं इतने विषय
भाषा, गणित, विज्ञान, समाज शास्त्र...
मात्र एक जीवन ही तो जीना है
क्या
करूंगी ये सब सीख कर
फिर न जाने कब कैसे
भर आया जीवन में
काव्य, रस, अलंकार, छंद
जी भर कर जिया मैंने उनको
धीरे धीरे गणित ने अपने पांव जमाए
फिर क्या था
बस जोड़ती घटाती रही
खोया और पाया
मजबूत होता रहा तर्क शास्त्र
अक्सर जब देखो
घर में
कहीं सुसज्जित, कहीं बेतरतीब
रखा, पड़ा, पसरा हुआ कुछ न कुछ
कभी हनन, कभी खनन, कभी संरक्षण, सौंदर्य
याद कराता भूगोल
घूम कर पीछे देखती हूँ तो
एक लंबा इतिहास
कितना इतिहास बाकी है नहीं जानती
पर जान गयी हूँ
जो न पढ़े होते ये विषय
तो कैसे जान पाती
विषयों पर जीवन की पकड़
जीवन पर विषयों की पकड़
और एक सुखद जीवन के लिये
दोनों का साथ.