विस्तार
मेरे नैनों के नीलाभ व्योम में,
एक चन्दा, एक बदली और
कुछ झिलमिल तारे रहते हैं.
सावन में,
जब घनघोर घटायें उमड़ घुमड़ कर,
आँखों में खो जाती हैं.
चन्दा, तारे सो जाते हैं.
वर्षों मरु थे, जो पोखर सारे,
स्वयमेव ही भर जाते हैं.
कभी शीत बहे तो,
चंदा, तारे ओढ़ दुशाला,
लोचन में सो जाते हैं.
दिग्भ्रमित हुए कुछ खग विहग.
जब दृग में वासंत मनाते हैं.
उषा किरण की रक्तिम डोरें,
जाने अनजाने,
नख में उलझाते जाते हैं.
तब पलकों की झालर के कोनें ,
आप ही खुल जाते हैं.
ओस के मोती सरक - सरक कर,
आंचल में भर जाते हैं.
गर्मी की,
तपती रातों में चख में खर उग आते हैं.
भीष्म की सी शर शैय्या में,
तब चंदा तारे अकुलाते हैं.
जाने क्या कुछ खोया मैंने,
ये झिलमिल तारे पाने को.
पर सावन रहा सदा नयनों में,
जाने क्यों मधुमास न आया.
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!
ब्लौगर बंधु, हिंदी में हजारों ब्लौग बन चुके हैं और एग्रीगेटरों द्वारा रोज़ सैकड़ों पोस्टें दिखाई जा रही हैं. लेकिन इनमें से कितनी पोस्टें वाकई पढने लायक हैं?
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अम्बर रहा सदा अंखियों में,
जवाब देंहटाएंपर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!
वाह बहुत सुन्दर एहसास
भावपूर्ण्
waah vedna ko kitna prateekatmak dhang se prastut kiya...bahut khoob...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
"पर सावन रहा सदा नयनों में,
जवाब देंहटाएंजाने क्यों मधुमास न आया.
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!"....
kitna dard bhara hai in pankiton me... jiwan ka dard... jo har kisi ke man ke kone me hani naa kahin hota hai... anupan abhivyakti... sunder vimv yojna.. naya prayog...
जाने क्या कुछ खोया मैंने,
जवाब देंहटाएंये झिलमिल तारे पाने को.
पर सावन रहा सदा नयनों में,
जाने क्यों मधुमास न आया.
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!
वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !
ati sunder shavd chayan aur utkrusht shailee..........
जवाब देंहटाएंlajawab lekhan.......
"जाने क्या कुछ खोया मैंने,
जवाब देंहटाएंये झिलमिल तारे पाने को.
पर सावन रहा सदा नयनों में,
जाने क्यों मधुमास न आया.
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!"
यही जीवन है - चाहतें कभी पूरी नहीं होतीं - हर बार की तरह लाजवाब प्रस्तुति
भाव पूर्ण रचना है ... मन का विस्तार खोजती अनुपम रचना ...
जवाब देंहटाएंतब पलकों की झालर के कोनें ,
जवाब देंहटाएंआप ही खुल जाते हैं.
ओस के मोती सरक - सरक कर,
आंचल में भर जाते हैं.
मन की पीड़ा को सुन्दर शब्द दिए हैं...
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
बहुत ही भावपूर्ण रचना....
jhaler ke kone... ek naya prayog achchha laga......akhiri 4 lines mein bahut kasak hai. bhavpurn abhivyakti.... sshakta lekhan....
जवाब देंहटाएंपर सावन रहा सदा नयनों में,
जवाब देंहटाएंजाने क्यों मधुमास न आया.
बहुत सुन्दर गीत. बधाई.
"अम्बर रहा सदा अंखियों में,
जवाब देंहटाएंपर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!"..
अत्यन्त सुन्दर ! मुग्ध हुआ !
आभार ।
शानदार प्रस्तुति..बहुत अच्छा लगा इस गीत को पढ़ना.
जवाब देंहटाएंक्या बात है मैम...क्या बात है। बहुत ही खूबसूरत....हिंदी के कुछ बेहद ही कोमल सुंदर शब्दों से सजी-धजी एक मोहक रचना।
जवाब देंहटाएंऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
जवाब देंहटाएं'गर्मी की,
जवाब देंहटाएंतपती रातों में चख में खर उग आते हैं.
भीष्म की सी शर शैय्या में,
तब चंदा तारे अकुलाते हैं.'
अद्भुत!!!!!!!!!
लाजवाब प्रस्तुति और लाजवाब चित्र ...
जवाब देंहटाएंTumhara 'vistar' to yahan,apni rachnaon me nazar aa raha hai!
जवाब देंहटाएंbahut hi mahnat se sundar shabdo ko chun chun kar jo aapne mala piroyi hai uski tareef karna to u lagega ki aapki mahnat ko aanka ja raha hai aur apke ehsaso ko tola ja raha hai..so ye to nahi ho sakta ki tareef k do bolo se is shrshthtam rachna ko chhota kiya ja sake.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाएँ अच्छी लगीं, मगर इस रचना के कुल मिला कर पसन्द आने पर भी 'स्वमेव' और 'वासंत' का प्रयोग कुछ खटक रहा है। यह वर्तनी त्रुटि जैसा आभास दे रहा है जो आपके स्तर की रचनाओं में शोभा नहीं देता।
जवाब देंहटाएंयदि यह गेयता को या लय को बनाए रखने के लिए प्रयुक्त कवि का स्वतंत्रताधिकार है तो सहज शिरोधार्य है, तब कुछ नहीं कहना सिवाय इसके कि आपकी रचनाएँ अच्छी भावप्रवण लगीं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंतब पलकों की झालर के कोनें ,
जवाब देंहटाएंआप ही खुल जाते हैं.
ओस के मोती सरक - सरक कर,
आंचल में भर जाते हैं
.... मन की व्यथा का सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति......
hi..
जवाब देंहटाएंaaj pahli baar aapke blog par aaya..
wah...kya kavita likhi hai...
Deepak Shukla...
बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंye to aseem vistaar hai, bahut achhi rachna , vistrit gahre vichaar
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna.
जवाब देंहटाएं"अम्बर रहा सदा अंखियों में,
जवाब देंहटाएंपर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!"..
बहुत ही सुन्दर भाव...ख़ूबसूरत शब्दों से सजी सुन्दर रचना ...
साधुवाद स्वीकार करें... एक स्तरीय साहित्यिक रचना से साक्षात्कार हेतु... वर्षों जिन शब्दों से दूर हो चुका था और उनके पर्याय अपना चुका था, एक बार फिर मिलकर अपनापन का अनुभव हुआ...तमाम ऋतुओं के बाद भी एक प्रश चिह्न पर समाप्त होति कविता, अत्यंत अनूठी है...
जवाब देंहटाएंसावन नयनों मे रहा ,मधुमास न आया और ये झिलमिल तारे पाने को क्या कुछ नही खोया बेहतरीन भाव ।वैसे तो पूरी रचना ही भाव प्रधान है साथ ही उपमा अलंकार से अलंक्रत है ।सिर्फ़ अलंकार ही अलंकार हों और भाव न हो तो रचना फ़ीकी सी लगती है मगर इसमे तो गम्भीर भाव व चिन्तन है - जो तारे मैने पाये वे भी भीष्म की शर शैया में अकुलाते है और घटायें घुमड कर आंखों मे खो जाती है ।इसके अतिरिक्त इस रचना मे शब्दों का चयन निराली छटा दिखला रहा है यथा नीलाभ व्योम,खग-विहग,दिग्भ्रमित,वासंत,रक्तिम डोरें,पलकों की झालर ओस के मोती आदि ।
जवाब देंहटाएंसावन नयनों मे रहा ,मधुमास न आया और ये झिलमिल तारे पाने को क्या कुछ नही खोया बेहतरीन भाव ।वैसे तो पूरी रचना ही भाव प्रधान है साथ ही उपमा अलंकार से अलंक्रत है ।सिर्फ़ अलंकार ही अलंकार हों और भाव न हो तो रचना फ़ीकी सी लगती है मगर इसमे तो गम्भीर भाव व चिन्तन है - जो तारे मैने पाये वे भी भीष्म की शर शैया में अकुलाते है और घटायें घुमड कर आंखों मे खो जाती है ।इसके अतिरिक्त इस रचना मे शब्दों का चयन निराली छटा दिखला रहा है यथा नीलाभ व्योम,खग-विहग,दिग्भ्रमित,वासंत,रक्तिम डोरें,पलकों की झालर ओस के मोती आदि ।
जवाब देंहटाएंजाने क्या कुछ खोया मैंने,
जवाब देंहटाएंये झिलमिल तारे पाने को.
पर सावन रहा सदा नयनों में,
जाने क्यों मधुमास न आया.
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!
अद्भुत गहराई, बहुत निष्छल अभिव्यक्ति. किन शब्दों में कहूं...
आप मेरे ब्लाग में आईं
धन्यवाद
जाने क्या कुछ खोया मैंने,
जवाब देंहटाएंये झिलमिल तारे पाने को.
पर सावन रहा सदा नयनों में,
जाने क्यों मधुमास न आया.
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!!
अद्भुत गहराई, बहुत निष्छल अभिव्यक्ति. किन शब्दों में कहूं...
आप मेरे ब्लाग में आईं
धन्यवाद
मन को छू जाने वाले भाव....
जवाब देंहटाएं--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
आपकी रचना कई लोक घुमाती है...
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर भावपूर्ण !!
काश हम भी कुछ इस तरह अपने अंतर्मन के भाव कह सके. (आप सीखा दीजये मुझे)
- सुलभ
जाने क्या कुछ खोया मैंने,
जवाब देंहटाएंये झिलमिल तारे पाने को.
पर सावन रहा सदा नयनों में,
जाने क्यों मधुमास न आया.....सुन्दर रचना..
बहुत सुन्दर चित्र! इससे छूट पाऊँ तो आगे बढ़ूँ, आगे पढ़ूँ…
जवाब देंहटाएंयदि आप चित्र को नीले आसमानी रंग में रंग दें तो बहुत ही कमाल का हो जाए दृश्य।
क्या पलकें हैं-क्या नयन हैं! वाह! वाह-वा!
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंMaaf kijiyga kai dino busy hone ke kaaran blog par nahi aa skaa
जवाब देंहटाएंअद्भुत कविता और उसका शिल्प भी, सही मायने में कविता।
जवाब देंहटाएंहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंbehad gehre bhaav! uttam!
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