वियोग
काया पूरी सिहर उठी,
हुई उष्ण रश्मि बरसात.
अघात वर्धिनी बातों ने,
था तोड़ा उर का द्वार.
सांसें सिमट गयीं सिसकी में,
आया ऐसा ज्वार.
हुआ रोम रोम मूर्छित,
धमनी में वेदना संचार.
पलक संपुटों में उलझे बिंदु,
गिर गिर लेने लगे शून्य आकार.
मैं खोल व्यथा की गांठ उजवती,
बिछोह का रो रो त्योहार.
वो जाने कैसा पल था,
जब बही वियोग बयार.