कुदरत से न डरने वाले घूम, रहे हैं शेर से
देखो आफत बरस रही है, अम्बर की मुंडेर से.
जो कुछ भी जोड़ा सबने था, खून पसीना पेर के
देखो कैसे गटक रहा जल अन्दर बाहर घेर के.
सब कुछ बदल गया पलभर में, नभ की एक टेर से
बस्तियां हैं निकल रहीं, देखो मलबों के ढ़ेर से.
जाने कितने पार हो गए, इस जीवन के फेर से
देखो दिया जवाब इन्द्र ने, सेर का सवा सेर से.
पूंछ रही है हम से प्रकृति, इक इक घाव उकेर के
देखो! जान गए न तुम अब, क्यों आया सावन देर से.