तुम्हारी
पिछली कविता में तुमसे इक सवाल पूंछा था,
"मेरी हर धड़कन में बस तुम ही हो
और तुम्हारी धड़कन में .....???"
अजीब सी बैचैनी हो रही है
तुम्हारा जवाब जो नहीं आया.
हर इक आहट तुम्हारी मिस कॉल सी लगती है.
पुरानी यादों को ताज़ा करना चाहा तो पाया
मेरी रिंग टोन आज भी वही है
"चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो......."
पर तुम्हारी कॉलर ट्यून
कुछ बदल सी गई है.
तुम्हारी सांसे जैसे ही मेरी सांसों में घुलने लगती हैं.
अचानक ही सिग्नल वीक हो जाता है !
सारा का सारा सिग्नल पकड़ने की चाह में अपना टावर,
अपने दिल पर ही लगा रखा है.
तुम्हारे ख्वाब को जब जब अपना बनाना चाहा
अचानक इक महिला का चिर परिचित सा स्वर बीच में आ गया
"उपभोक्ता अभी व्यस्त है"
"नेटवर्क के बाहर है"
"कॉल सम्भव नहीं है"
असमंजस में हूँ
कहीं तुम "नंबर पोर्टेबिलिटी" के मोह पाश में तो नहीं हो
या फिर २ जी से ३ जी होने की कोई चाहत???
अगर ऊपर लिखी बातें सिर्फ मेरा भरम है तो अच्छा है
यदि लेश मात्र भी सच है,
तो तुम्हें आगाह किये देती हूँ
कि अक्सर मोह पाश, माया जाल पर मोह दंश भारी पड़ जाता है.
सो लौट आओ अपने "ओरिजनल सर्विस प्रोवाइडर" के पास
क्योंकि सिर्फ वो ही तुम्हारा अपना है.
मिस... कॉल.... नहीं इस बार तुम्हारी कॉल की प्रतीक्षा में,
आज भी तुम्हारी ही मैं.