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मंगलवार, 12 नवंबर 2013

ख्वाब

ख्वाब
 
झलती रही पंखा साँझ सारी शाम,
रात बोझिल हुई चुप चाप सो गई.

मुंह ढांप के कुहासे की चादर से,
हवा गुमनाम जाने किसकी हो गई.
 
चाँद ने ली करवट बांहों में थी चांदनी,

रूठी छूटी छिटकी ठिठकी वो गई.
 
बदली के आंचल की उलझने की हठ,

आकाश की कलँगी भिगो गई.

बादल के बाहुपाश में आ कर दामिनी,
मन के सारे गिले शिकवे भी धो गई.
 
राग ने रागिनी को धीमे से जो छुआ,
वो बही बह के कानों में खो गई.

आँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
सुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
 
  सज संवर के पंखुरियों पे बैठी थीं जो,
आज वो ओस की बूंदें भी रो गईं.

मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.

रविवार, 19 जून 2011

अलौकिक मिलन


अलौकिक मिलन


कब से वो एक दूसरे को ताका करते थे दूर से, 
कल जब रात मिलन की आई,
सारी दुनिया कैसे जान गयी?
कोटिक आखें,  
अलौकिक मिलन निहारने को आतुर.
शायद उन्हें भी आभास था. 
तभी तो बादलों को 
समझाया, बुझाया और मनाया 
और तान दी बादलों ने काली रुपहली चादर,
उस प्रेमी युगल के चारों ओर. 
जाने क्या क्या हुआ फिर 
प्रणय प्रलाप, प्रणय विलाप, प्रणय निवेदन,
बाहों के झूले और प्रणय समर्पण,
संभवतः बादल भी ये देख 
खो गया अपनी दुनिया में 
लगा देखने बदली को 
अपनी बाँहों में भरने का ख्वाब. 
वो थोड़ा सकुचाया, शर्माया और सिमट गया.  
उस पल मैंने या शायद कोटि चक्षुओं ने देखा 
प्रेमी युगल को इक दूसरे की बाँहों में. 
उसने भी मुझे देखा.
हया का सुर्ख़ नारंगी रंग 
फैल गया उसकी देह पर.
प्रेमिका अवाक् थी, 
स्थिति से अनभिज्ञ थी. 
हाँ! मैंने देखा धरती और चाँद को,
 एक दूसरे की बाँहों में. 
सोचती हूँ,
 मैं तो होती हूँ,
 जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में. 
उफ्फ्फ ... पर उनका क्या 
जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.

(चित्र साभार गूगल से)

रविवार, 16 जनवरी 2011

खबर

 खबर


आसमान में आज परिंदों की खूब आवा-जाई है
वहां पे उन्होंने खूब खलबली मचाई है.
सूरज, चाँद, तारे, आसमान, बदली, जिसको देखो
सबके चेहरे पे उड़ती दिखी हवाई हैं.

जाने कैसे हैं ये परिंदे देखो,
कैसी कैसी बातें यहाँ वहां उड़ाई हैं.
"कल सूरज को बदली खा जाएगी".
बदली खूब खिल खिल के खिलखिलाई है.

"आज ये बादल फटेगा यहीं कहीं"
बादल के माथे पे लकीरें छ्नछ्नाई हैं.
"आज प्यार में वो आसमान के तारे तोड़ लायेगा"
तारों ने जान बचाने को होड़ लगाई है.

"चाँद पे अब इंसान घर बनाएगा"
चाँद ने कर ली अपने सर की धुनाई है.
"वो बचाने को जान अपनी धरती आसमान एक करेगा"
धरती आसमान की आपस में ठनठनाई है.

"राज़ खुला तो आसमान टूट पड़ेगा"
आसमान ने शुरू कर दी छुपन छुपाई है.
चाहती हूँ, कह दूँ, गलती से सही,
ये मुसीबत मेरी ही कराई धराई है.

आ गए प्रधान सम्पादक तभी, बोले,
हमने सबसे ऊँची छलांग लगाई है.
अंबर तक खब............रें
सिर्फ प्रिंट मीडिया ने पहुंचाई हैं.

सोचती हूँ, बता दूँ, सच सबको,
कल जब से अखबार की पतंगें बना
आसमान में ऊँची उड़ाई हैं.
पढ़-पढ़ कर परिंदों ने इक इक खबर,

पूरे आकाश में सुनाई हैं.
तभी से
सूरज, चाँद, तारे, आसमान, बदली, जिसको देखो,
सबके चेहरे पे उड़ती दिखी हवाई हैं.


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