"भाव शून्य"
वो बहुत खुश थी
बरसों से प्रतीक्षारत थी,
जिस ख़ुशी के लिए
वो उसे मिल जो गयी थी.
जीवन में एक पूर्णता,
एक सम्पूर्ण नारीत्व,
एक अजीब सी हलचल,
उत्साह और..
पूरी देह में सिहरन
पर न जाने क्यों,
उस सम्पूर्ण नारीत्व को देखने की चाह,
उसमें जाग उठी.
फिर क्या था,
एक कमरा तार मशीनें और
कुछ चहलकदमी.
अचानक कुछ हलचल हुई.
नेह के ताल में एक नन्ही सी जान.
गालों में गहरे गड्ढे,
एक शांत सौम्य मुस्कान.
फिर एक अंगडाई,
पांव लम्बे खिंचे,
दूर तक जाते हाँथ,
घूमता शरीर,
फिर वही शांत सौम्य मुस्कान.
उसी पल पाया उसने.
अपनी देह में, नन्हे पांवों का कोमल स्पर्श,
कोहनिओं की हड्डियों की मीठी चुभन.
खो जाना चाहती थी वो उसमें
पर हैरान थी वो !!!!
न जाने क्यों पास बैठे लोगों के चेहरे
अचानक भाव शून्य हो गए थे ...