राष्ट्रवादी
भ्रष्टाचार की कोख में
सांसों की डोर थामे
एक नया जीवन
कभी अनिच्छा,
कभी मात्र एक इच्छा
कई बार संस्कारो की उबकाई
कहीं सत्ता की अनिद्रा
कहीं सत्ता में ही निद्रा
कभी धन का अपच,
कहीं लालच की मितली
कही अनकही सुगबुगाहट
भाग्य की करवट
भ्रष्टाचार के लहू से
सिंचित नव जीवन
जन्म होता है
राष्ट्रवादी विध्वंस
राष्ट्रवादी भ्रष्टाचार
राष्ट्रवादी हिंसा का
जानती हूँ मैं
पर शायद अनभिज्ञ है वो
सत्य से
कि अभिशप्त है वो कोख
एक राष्ट्रवादी न जनने को।