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रविवार, 16 जनवरी 2011

खबर

 खबर


आसमान में आज परिंदों की खूब आवा-जाई है
वहां पे उन्होंने खूब खलबली मचाई है.
सूरज, चाँद, तारे, आसमान, बदली, जिसको देखो
सबके चेहरे पे उड़ती दिखी हवाई हैं.

जाने कैसे हैं ये परिंदे देखो,
कैसी कैसी बातें यहाँ वहां उड़ाई हैं.
"कल सूरज को बदली खा जाएगी".
बदली खूब खिल खिल के खिलखिलाई है.

"आज ये बादल फटेगा यहीं कहीं"
बादल के माथे पे लकीरें छ्नछ्नाई हैं.
"आज प्यार में वो आसमान के तारे तोड़ लायेगा"
तारों ने जान बचाने को होड़ लगाई है.

"चाँद पे अब इंसान घर बनाएगा"
चाँद ने कर ली अपने सर की धुनाई है.
"वो बचाने को जान अपनी धरती आसमान एक करेगा"
धरती आसमान की आपस में ठनठनाई है.

"राज़ खुला तो आसमान टूट पड़ेगा"
आसमान ने शुरू कर दी छुपन छुपाई है.
चाहती हूँ, कह दूँ, गलती से सही,
ये मुसीबत मेरी ही कराई धराई है.

आ गए प्रधान सम्पादक तभी, बोले,
हमने सबसे ऊँची छलांग लगाई है.
अंबर तक खब............रें
सिर्फ प्रिंट मीडिया ने पहुंचाई हैं.

सोचती हूँ, बता दूँ, सच सबको,
कल जब से अखबार की पतंगें बना
आसमान में ऊँची उड़ाई हैं.
पढ़-पढ़ कर परिंदों ने इक इक खबर,

पूरे आकाश में सुनाई हैं.
तभी से
सूरज, चाँद, तारे, आसमान, बदली, जिसको देखो,
सबके चेहरे पे उड़ती दिखी हवाई हैं.


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