ये किसकी है आहट...
केसरिया परदे के पीछे
सांवरी रात अलसाने लगी है.
कपासी बादलों से सुनने को लोरी
निशा सलोनी मचलने लगी है.
सुनहरी किरणों से निकल कर परियां
जादू नया जागने लगी हैं.
इतरा के, इठला के, बल खा के,
धूप की कलियाँ चटखने लगी हैं.
फूल, पत्तों, दूब और पेड़ों से
ओस की बूंदें विदाई लेने लगी हैं.
ये किसके स्वागत को देखो
दिशाएं सजने सवरने लगी हैं.
लिपट के रात की बाँहों में सोया था,
उस सवेरे के आने की आहट होने लगी है.
केसरिया परदे के पीछे
सांवरी रात अलसाने लगी है.
निशा, जादू, ओस, सुनहरी, केसरिया, बादल, किरणे, रचना, हिंदी कविता,