आकर्षण
कुछ लोग अत्यधिक सख्त होते है,
या हो जाते हैं.
जैसे कि तुम.
सबने तुम्हें आज़मा के देखा.
मैंने भी,
अंतर इतना ही था,
कि सब नमी से, व्यथित थे.
और मैं, नमी के लिए.
जानती जो हूँ, कि नमी के बिना,
मेरा अस्तित्व ही नहीं,
एक वो ही है, जो मुझे,
तुम्हारे नजदीक लाती है.
तुम्हारे नजदीक आते ही
फैलती हूँ, बिखरती हूँ.
मैं लिपटती हूँ, तुम्हारी देह से.
पाती हूँ सम्पूर्ण अपने आपको.
और जानते हो तब कैसी,
लालिमा निखरती है तुम्हारी काया पर.
क्या कहूँ अब,
जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
तुम्हारा सामीप्य पाने को.
मुझे जंग होना ही पड़ा है.
(चित्र गूगल से साभार)