अब से रावण नहीं मरेगा
कहते हैं, रावण व्यथित नहीं होता
मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र
दसग्रीव
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
अपराधी हूँ ,
हाँ! मैं अपराधी हूँ...
पर मात्र एक
अक्षम्य अपराध
सीता हरण का
पर यहाँ तो होता है
प्रतिदिन
न जाने कितनी ही सीताओं का अपहरण
फिर दुस्श्शासन बन चीर हरण,
करती हैं वो, मरण का
रोज ही वरण
एक अपराध का दंड मृत्यु
सौ अपराध का दंड मृत्यु
फिर क्यों ???
मैं एक अपराध के लिए
युग युगान्तरों तक जलूं
मैं, दशकंधर सबने देखा है
तुम सब कितने सर, किसने देखा है
मैं, लंकेश, लंकापति, दशानन
व्यथित हूँ !!!
मैं रावण हूँ
पर रामायण बदलने न दूंगा
अब मैं रावणों के हांथों नही मरूँगा
ये प्रण लेता हूँ
अब न मरुँगा,
अब न जलूँगा
जाओ ढूंढ़ लाओ,
मात्र एक राम मेरे लिए
तब तक मैं यहीं प्रतीक्षारत हूँ
मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
अपराधी हूँ ,
पर सिर्फ राम का.