शनिवार, 6 अगस्त 2022

अमावस

 अमावस

 

यूँ कुछ दिनों से मेरे भीतर

बहुत कुछ बदल रहा था

घट रहा था बढ़ रहा था

यूँ पूरा एक चाँद

घटता,बढ़ता लड़ता रहा

आज अचानक यूँ लगा

अमावस का पूरा एक चाँद

मेरे भीतर पिघल रहा हो

मेरी अमावस में घुल रहा हो

भीतर एक तन्हा

आसमान मचलने लगा

सघन मौन पीड़ा को 

स्वर देने लगा

मन की प्रस्तर सतहें

टूटने लगीं चटखने लगीं

दरारों में चाँद उतरने लगा

वेदना की ज्योति के गले

लगने लगा 

मिलने लगा

आकाश न पाने की पीड़ा 

अनुभव करने लगा

एक निगाह

चेहरे पर गिर कर 

टूट कर बिखरने लगी

जख्मों के पैबन्दों के 

टांके टूटने लगे

मैं अंजुरी में तड़प भरने लगी

सन्नाटे के 

छंद और चौपाइयां 

फुसफुसाने लगे

चाँद के अनगिनत 

टुकड़ों को समेटने लगी

एक सुरक्षित एकांत भरने लगी

सोचने लगी

ये तो फिर भी अमावस का चाँद है

कभी तो उबर लेता होगा

मैं तो पूरी की पूरी

अलिखित, अपठित, अमिट

अमावस हूँ

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