इसे निमंत्रण न कहो
कुछ दिन पहले एक विवाह निमंत्रण ने झकझोर दिया. न इसे पढकर न इसे देखकर लगा कि यह निमंत्रणपत्र है. यह समाचार पत्र में छपे किसी समाचार की तरह एक पैराग्राफ मात्र था.
पूर्व पुलिस निदेशक की पुत्री आई ऐ एस अधिकारी और नेत्र विशेषज्ञा की पुत्री, जिसने भारत के एक प्रतिष्ठित संस्थान से डिग्री ली है, का विवाह आई एफ एस अधिकारी के पुत्र , जो भारतीय राजस्व सेवा में सहायक आयुक्त है, से हो रहा है. उक्त अवसर पर प्रीतिभोज में सम्मिलित हों. दर्शनाभिलाषी मात्र पति और पत्नी.
ना विवाह में सम्मिलित होने का आग्रह ना कार्यक्रमों की कोई जानकारी. मन आहत हुआ और यह कविता बनी.
इसे निमंत्रण न कहो
मैं अपनों की सफलता को
अखबार करती क्यूँ फिरूं
जताने को ये बहुत
मेरी निगाहे नूर है
हो सको मौन दो पल तो कहो
पर इसे निमंत्रण न कहो
तुम पर सिमट कर गई
ये निरी दुनिया तुम्हारी
रिश्तों का ये ह्रास है
ये निरा उपहास है
कुछ विनम्रता ला सको तो कहो
पर इसे निमंत्रण न कहो
नेत्र विशेषज्ञा हो तुम सब जानते हैं
आँखों में टांके रोज कितने ही लगाती
उधड़े हुए रिश्तों की सीवन कभी झांक पाती
रिसते लहू के आईने को ताक पाती
सुई में रिश्ते पिरो लो तो कहो
पर इसे निमंत्रण न कहो
कुछ खोजती कुछ ढूंढती बिसरी कहीं
छोटी कहीं मोटी कहीं धुंधली कहीं
नमक की खेती लिये, गीली कहीं सीली कहीं
बेनूर आँखों में कभी, झांकती हो
बेवजह खारा कभी आंख का पानी पिया हो तो कहो
पर इसे निमंत्रण न कहो
लाडली को कुटुंब की
उपलब्धियों में तौलती
अप्रत्याशित प्यार में कभी
देखा कभी तौला कभी है
मुस्कुराहट पर कभी निहाल हो तो कहो
पर इसे निमंत्रण न कहो
कुर्सी ही जिंदगी है जानते हैं
उसके भी पाए तुमको पहचानते हैं
पर अंत समय चार कांधे ही तानते हैं
मुझे भी बहुत से कांधे मानते हैं
उपलब्धियों के चारों कांधों को टटोलो तो कहो
पर इसे निमंत्रण न कहो
करबद्ध प्रार्थना है
इसे अपने कुटुंब कि उपलब्धियों का चित्रण कहो
अपनों के ही बीच का मंत्रण कहो
बेवजह रेवड़ी वितरण कहो
पर इसे निमंत्रण ना कहो
पर इसे निमंत्रण न कहो.