राजनीति इधर भी
कभी अकड़ती इतराती
भाव खाती कोई सब्जी
अचानक बेचारी हो जाती
जब दूसरी दो चार सब्जियाँ
लजाती लड़खड़ाती गिर पड़ती,
हम उसे थाम लेते
बस जाती वो
हमारी आँखों में
संकटमोचन बन,
पर अब वो बात नहीं
इसके पहले कि
उपयुक्त समय जान
कोई लजाये, लड़खड़ाये, गिर पड़े.
भाव खाती सब्जी
सबको सहारा दे
उठाती है अपने साथ.
ऊपर से देखने में
अलग अलग दल
श्रेणियाँ हैं इनकी
अब अंदर सब एक हैं
सब्जी का राजा आलू
गृह मंत्री टमाटर
वित्त मंत्री प्याज
फलों के शहंशाह आम
करते हैं मंत्रणा
एक वातानुकूलित कक्ष में
और पल भर में ही
गरीबी रेखा पर
झूलता मेरा संसार
मेरा चूल्हा, चौका
कुपोषण के शिकार
साग भाजी को
तकते मेरे बर्तन
आ जाते हैं
गरीबी रेखा के ऊपर
जानना चाहती हूँ
साग भाजी में राजनीति है
या राजनीति में साग भाजी
या हर साँस हर आस में राजनीति.