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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

करवा चौथ


करवा चौथ 
 
इस करवा चौथ
नहीं महसूस हुई तुम्हारी कमी
एक रात पहले ही भर जो लिए थे
बहुत से टिमटिमाते तारे आँखों में
न भूख, न प्यास,
न व्यथा, न प्रतीक्षा.
महसूस करती रही
हर टिमटिमाते तारे में तुम्हें
दिन भर जगमगाती रही
उसी प्रकाश में मैं
तारों ने भी अच्छी दोस्ती
कर ली थी एक दूसरे से
जानते हो फिर क्या हुआ
शाम होते ही एक दूसरे का हाथ थाम
आपस में मिल गए सब
और मेरे लिए मात्र मेरे लिए
बना दिया एक बड़ा सा चाँद
फिर क्या था
भरपूर निहारा उसे, पूजा उसे, 
गले से लगाया उसे
अब आसमान में चाँद
निकले न निकले... 

रविवार, 6 नवंबर 2011

चाँद

चाँद 
इस करवा चौथ
मैंने भी व्रत रखा 
निर्जला औरों की तरह.
रात सबने चाँद को पूजा 
और चली गयीं
अपने अपने चाँद के साथ 
अपने अपने चाँद के पास.
अकेला रह गया 
आस्मां का वह चाँद और
मैं...
मैंने उसे बुलाया 
अपनी दोनों हथेलियों के बीच
कस कर उसे भींचा    
दोहरा किया और छुपा लिया 
तकिये के नीचे.
सोने की नाकाम कोशिश 
पर न जाने कब 
चाँद सरक गया 
रह गयी तो बस 
गीली हथेलियाँ और तकिया. 
नहीं जानती 
मेरी आँखों के समंदर में 
सैलाब आया था 
या रात चाँद बहुत रोया था 
हाँ पर सूरज 
जरुर मुस्कुरा रहा था.

रविवार, 7 नवंबर 2010

समीकरण

समीकरण





याद नहीं पर जाने कब से सुनती आई हूँ.

सुहागिन औरतें रखती हैं निर्जला,

करवा चौथ का उपवास,

अपने पति की लम्बी आयु के लिए,

मैंने भी रखे कितने ही ...

केवल तुम्हारे नाम पर.

पर आज थोडा असहज महसूस कर रही हूँ,

सोचा सच आज बता ही दूँ.

मैंने रखे ये उपवास.

तुम्हारे दीर्घायु होने के लिए नहीं,

अपने निजी स्वार्थ वश.

क्योंकि जानती हूँ.

तुम्हारे बिना मैं हूँ ही नहीं.

पर कल ही मेरी पिछली कविता,

के जवाब में तुमने कहा.

इस धरती पर तुम्हार तुम होना,

सम्भव ही नहीं,

मेरे मैं हुए बिना.

सो अब से मैं ये उपवास रखूंगी तो सही,

पर अपनी लम्बी उम्र के लिए.

न की तुम्हारी.


(चित्र साभार गूगल के सौजन्य से)  


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