रविवार, 27 दिसंबर 2009

मेरा मन


मेरा मन




 बांच रही थी रात चांदनी
जब मेरी आँखे और मेरा मन.
पूनम के नयनों से भी छलके थे
कुछ सुधा सने हिम कण.
 उस क्षण
मौन   थी भाषा, मौन थे शब्द,
शब्द शक्तियां मचल रहीं थीं
अंतर अन्दर बिफर रही थी
सांसें तन से छूट रहीं थीं
हिमखंडों सी टूट रहीं थीं
टूटी साँसों की तूलिका
ओस की बूंदों के आईने में
कुछ चित्र अधूरे खींच रहीं थीं
दृग कोटर भी भींज रहे थे
अरु मन पाती को सींच रहे थे
क्योंकि
पास कहीं तुम, किसी ओट में
निशा, यामिनी  और किरण को
अपनी बाहों में भींच रहे थे
और तब मैं
 अपने  उर के शूलों को

अपने लहू से सींच रही थी.

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

पुनर्जन्म

पुनर्जन्म




मेरे सपनों के शव

जब पड़े थे बिखरे

आँखों में था रुदन

 और हर तरफ क्रन्दन

निराशा के गिद्ध नोंच रहे थे

उनका बदन

इक आशा की डोर

जो कहीं जुड़ी थी सांसों से

बोली वो और फिर टूट गयी

"यही नियति है सपनों की और जीवन की

अब शवदाह  करो" 

देख रही थीं आंखे

शवदाह में भी इक नया सपन

इन सपनों से शायद

कोई इक सपना जी जाए

आघात लगा

फिर टूट गया आँखों में कुछ

मुखाग्नि देने चली

समेटे अंजुरी में सपन

जाने कैसे चोट लगी

बिखर गये शव के सब कण

अब सोच रही

वैधव्य तुम्हारा ओढ़

कहीं छुप जाऊं मैं

यदि तुम पुनर्जनम ले

बस जाओ, सदा सदा को

मेरे किसी

प्रिय जन की आँखों में

रविवार, 13 दिसंबर 2009

दरारें

दरारें




पहले रिश्तों में कुछ दरारें रहती थीं
अब दरारों में रिश्ते रहते हैं
पहले दरारों को हम सीते थे
आज उन्हीं दरारों में हम जीते हैं
कभी ये रिश्ते धरोहर की तरह संजोये जाते थे
आज सिर्फ दिखाने को ढोए जाते हैं
कभी ये रिश्ते चाशनी से मीठे
आज के रिश्ते ख़मीर से खट्टे
देखने में उपर से मजबूत
नीचे बेज़ार, बेदम,खोखले
आज रिश्तों का दम घुटने लगा है
इन दरारों में पनपने की जगह ही कहाँ है 
ऐ इंसान जागो
इन रिश्तों को आज़ाद करो
इन्हें खुली हवा चाहिए
इन्हें संभलने को कुछ वक़्त चाहिए
रिश्तों में चाशनी नहीं
चाशनी को बहने को
दिल में कुछ जगह चाहिए


(3XQ93BBGWCVP) 

रविवार, 6 दिसंबर 2009

छत

छत



घर की छत पर
दीवारों के कोनों में
उगते कुछ नन्हें पौधे
केवल नमीं के सहारे
जीते ये पौधे
कितनी ही बार
नोंच कर फेंक दिए हैं मैंने
हर बार
न जाने कहाँ से
अपने अस्तित्व को बचाने को
ढूँढ ही लाते हैं कुछ नमी
अपने आस-पास
फिर उसी नमी की गोद में
पलते बढ़ते पनपते ये पौधे
वैसे ही
मेरे आँखों की कोर में
बसते कुछ सपने
आँखों की नमी में पनपते
कितनी ही बार
तोड़ दिए हैं मैंने
पर ये सपने हैं कि
अपने अस्तित्व को बनाये रखने को
ढूँढ ही लेते हैं,
आँखों के कोनों में छिपी नमी
हर बार टूट कर और मज़बूत होते सपने
इन सपनों को साकार करने के लिए
चाहिए हर रोज़
नमी की कुछ ताज़ा बूंदें
आँखों की नमीं
अब सिर्फ नमीं नहीं है
ये प्राण वायु है मेरे सपनों की

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

छल

छल



शांत मन में उठती लहरें


कभी ऊँची, कभी निष्प्राण,


कभी उद्विग्नता की हद को पर करती


जाने क्यों रहने लगी बीमार मैं


जाने किस किस से बेचार मैं


साधने को इस असाध्य रोग


जाने कितने पीर, हकीम, अल्लाह


वल्लाह !


बदल डाले मैंने


और इक तुम थे कि


छलते रहे मुझे सारी उम्र


किसी बिना डिग्री के


झोलाछाप डाक्टर की तरह

बुधवार, 25 नवंबर 2009

सड़क

       सड़क



 तुमने किसी सड़क को चलते हुए देखा है

ये सड़क कहाँ जायेगी कभी सोचा है
 


ये सड़कें न तो चलती हैं,न कहीं जाती हैं

ये एक मूक दर्शक की तरह स्थिर हैं

ये सड़कें आजाद हैं
 
कहीं भी किसी भी सड़क से मिल जाने को
 
ये आज़ाद हैं किसी को भी



अपने से जुदा कर जाने को
 
ये काली लम्बी उथली


तो कभी चिकनी लहराती बलखाती
 
कभी सपाट तो कभी उबड़- खाबड़


असीम अनंत दिशायों तक फैली

अपने सीने पर


इन्सान को बड़े गर्व से उठाने को

कभी मंदिर मार्ग कभी मस्जिद मोड़ जाने को

पर
मंदिर मार्ग पर जाने वाला हर इन्सान मंदिर नहीं जाता


मस्जिद मोड़ पर जाने वाले सिर्फ मस्जिद नहीं जाते


गाँधी रोड पर जाने वाले सब गाँधीवादी नहीं होते

मदर टेरेसा रोड पर जाने वाले सब दयालु नहीं होते
 
क्यों ऐसे नाम रखते हैं सड़कों के
 
जहाँ गाँधी रोड पर दारू बिके


मंदिर मार्ग पर गाय कटे


मस्जिद मार्ग पर औरत बिके

मदर टेरेसा मार्ग पर इज्ज़त लुटे
 
ये सड़कें बड़ी धर्म- निरपेक्ष हैं

इन सड़कों में सर्व-धर्म समभाव है

इन सड़कों को मत बांटो

गाँधीवादियों के लिए

श्रद्धालुओं  के लिए

भिखारियों के लिए


इन्हें तो बस रहने दो


आम आदमियों के लिए



शनिवार, 21 नवंबर 2009

हमसफ़र

हमसफ़र




सुबहो शाम इस धूप को बदलते देखा है


इसी धूप में सायों को छोटा और बड़ा होते देखा है


एक ही दिन में कितने मिजाज़ बदलते देखा है


कभी साए को हमसफ़र के साथ तो कभी


हमसफ़र को साए से लिपटते देखा है


सब तो कहते हैं की बुरे वक्त में


साए को साथ छोड़ते देखा है

हमने तो बुरे वक्त में सिर्फ साया ही देखा है

लोग तो रिश्तों के टूटने की बात करते हैं


हमने तो टूटते रिश्तों का ग़म भी देखा है

सुबहो शाम इस धूप को बदलते देखा है



सोमवार, 16 नवंबर 2009

आज भी

आज भी



बचपन से, उनसे सुनती रही

एक माँ के न होने कि व्यथा

महसूस करती रही, उनकी ये वेदना

जो, कभी व्यथित कर देती थी मुझे भी

इससे भी ज्यादा व्यथित होती मैं

जब सुनती उनकी प्रभु से प्रार्थना

जो दुःख मुझ बिन माँ के बच्चे ने पाया

मेरे  बच्चे कभी न पायें

मेरे बच्चों से उनकी माँ कोई न छीनें
  
एक दिन ये सब कुछ बेमानी हो गया

जब मजबूर किया था उन्होंने ही

एक माँ को, उसके बच्चों से नाता तोड़ने को 

दुहाई दी थी, अपनी 

यानि उस माँ के सुहाग की 

लड़ती रही वो माँ

अपनी  ममता की लड़ाई

महसूस करती रही

अपनी छातियों में टीस

पर निशब्द  

ममता और सुहाग की जंग में

हार गयी एक दिन वो माँ

अपनी ममता की साँसे 

और अपने बच्चों के कांधों

 पर सज कर इस दुनिया से जाने का गौरव

आज भी उस माँ की याद में

 मैं परिंदों को उनका मनपसंद दाना खिलाती हूँ

और ढूँढती हूँ

 उनमें  उस अभागन  माँ को

शायद कभी कोई परिंदा मुझे देख कर

चहक उठे और मैं पढ़ लूँ 

उसकी आँखों में एक माँ होने का दर्द   





शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

ग़म



ग़म





एक ग़म जो तुमसे मिला

उसके मिलने का अब क्या गिला

एक रहबर जो मुझे मिला

उसके बिन अब क्या काफिला

अब तो यूँ ही चलेगा गम का सिलसिला

                          सुकून मिला, मिला, न मिला, न मिला

उसके न मिलने का भी अब क्या गिला


अब तो है यह सिर्फ ग़मों का काफिला

इसमें फिर एक ग़मगीन फूल खिला


एक ग़म जो तुमसे मिला

उसके मिलने का अब क्या गिला

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

ऊँची उड़ान


ऊँची उड़ान




  
इस आसमां को छूने की हसरत रही है दिल में


मैं पांवों पे उड़ के जाऊं, हाथों को भी बढाऊँ


जितना भी पास जाऊं, वो दूर ही रहा था


गर्दन उठायी जब भी, वो उड़ता ही जा रहा  था


मैंने उड़ना नहीं था सीखा, सो दूर जा गिरी थी


बैसाखियों के बल पर, कुछ पाना नहीं है सीखा


बेबस खड़ी थी मैं, यूँ हवा में कोहनियाँ टिकाये


कि चुपके से कोई बोला


आसमां को पहले सिर्फ तू छूना ही चाहती थी


अब सिर्फ आसमां को छूना मकसद नहीं है तेरा


आसमां है ऊँचा कोई बात अब नहीं है


आसमां को छूने का सवाल ही नहीं है


अब आसमां को मैं पाना ही चाहती हूँ


उस को पाकर आजमाना भी चाहती हूँ


क्यों, दूसरो के आसमां, में तारे बहुत हैं ज्यादा


क्यों मेरे आसमां  में एक चाँद भी नहीं है


कानों में शोर कैसा?


क्या, कुछ पा लिया है मैंने?


ये जोशे जुनूं, मेरे जिगर का ही असर है


कि आसमां पिघल कर नीचे को आ रहा है


ये उँगलियों का मेरे चुम्बक सा, असर है


कि आसमां खिंचा सा मेरी ओर आ रहा है


मैंने उसको पा लिया है उसने मुझको पा लिया है

बुधवार, 4 नवंबर 2009

नागफनी





नागफनी


दिल को ग़म के गर्द औ गुबार और धुएँ से बचाने को ,हमने

दिल में एक बगिया लगा रखी है

फूल खिल के गुलाब के चार दिन को

बगिया को सूनी बना जाते हैं

दिल की बगिया में सावन लहलहाने को सदा, हमने

नागफनी ही लगा रखी है

खुशबू होती है गुलाब की चार दिन

औ इतर से भी पाई जा सकती है

याद रखने को दिल की चुभन ता उम्र, हमने

दिल में नागफनी की बाड़ लगा रखी है

जीने को गुलाब को चाहिए

एक खुशगावर माली हवा औ पानी

जीवित रखने को नागफनी को,हमने

दिल में हरारत औ आँखों में नमी छुपा रखी है

झड़ जाता है गुलाब इश्क की हवा से भी

मेरी नागफनी ने दिल में गहरे

अपनी जड़ें बिछा रखी हैं

सताने वालों मेरे भूल न पाऊं तुम्हें

सो तुम्हारी तस्वीर हर कांटे पे लगा रखी है

तुम क्या दोगे हमें जीने के सहारे

उधार की सांसों पे जीने वालों

हमने तो काँटों में भी महफ़िल सजा रखी है

डाली है हम पर भी बुरी नज़र फूलों ने यारों

ये तो कांटे हैं जिन्होंने अस्मत बचाए रखी है

दिल को ग़म के गर्द औ गुबार और धुएँ से बचाने को ,हमने

दिल में एक बगिया लगा रखी है

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

मेरे दुश्शासन

मेरे दुश्शासन



वो ख़त

जो मैंने तुम्हें लिखे थे

हाँ, वो अनकहे ख़त

मैंने आज भी सहेज कर रखे हैं

मेरी अलमारी में बिछे

अखबार की तहों के भीतर

आज अचानक

वो फिर हाथ लग गये

खो गयी थी मैं

उन पुरानी बातों में

मैंने देखा

मेरी सुधियों का चीर थामे

तुम आज भी निर्भीक

वहीँ खड़े थे

छोड़ आई थी जहाँ मैं

तुम्हें बरसों पहले

तुम मुझे अच्छे लगे

इतने अच्छे कि

मुझे मैं द्रौपदी और तुम दुश्शासन लगे

मैंने तुमसे कोई विनती नहीं की

मैंने नहीं पुकारा किसी कान्हा को

क्योंकि मैं

चीर हरण चाहती थी

आज मैं अपने अंतर्मन को

अनावरित करना चाहती थी

अपनी भावनाओं को

निर्वस्त्र कर देना चाहती

तुम्हारे आगे

पर तभी

लाज के कान्हा ने अपनी

उपस्थिति दर्ज करा दी थी

द्रौपदी और दुश्शासन के

मौन संवाद के बीच

आज मुझे कान्हा का

हस्तक्षेप नहीं भाया

फिर क्या था

कान्हा ने अपना काम कर दिखाया

बढ़ता रहा सुधियों का चीर

गढ़ता रहा मन में पीर

बहता रहा नैनों से नीर

बस इतना ही सह सकी मैं

इससे ज्यादा कुछ और न कह सकी मैं

मेरे दुश्शासन

सहेज ली हैं मैंने वो अनछुई सांसें

फिर अपने सीने मैं

समेट ली हैं चंद अनकही बातें

मैंने अपने माथे के पसीने में

जाने कितने जनम लगेंगे

फिर सुधियों का दामन सीने में

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

दीपावली की शुभ कामनाएं




मेरे सभी मित्रो, पाठकों व उनके परिवार जनों को दीपावली की बहुत बहुत शुभ कामनाएं. यह दिवाली सबके लिए खुशियों कि बहार लेकर आये.

रचना

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

रिश्ते

रिश्ते





कुछ रिश्ते खो गए हैं

कुछ रिश्ते हो गए हैं
उस चौखट के अंदर
सूनी दीवार पर लगी
पुरानी खूंटी पर लटके
छोड़ आयी थी कुछ रिश्ते
वो रिश्ते खो गए हैं
सुना है
रिश्तों की एक नई ईमारत खड़ी करने की
होड़ में
कुछ लोगों ने
वो चौखट वो दीवार गिरा दी है
मेरे कुछ रिश्ते वहीं रो गए हैं
उस ईमारत की तरफ से आने वाली
हवा हरदम सर्द ही रहती है
क्योंकि उसमें होती हैं
कुछ सिसकियाँ कुछ सुबकियां
और कुछ आहें
सबने लाख समझाया
वहां कभी कोई अपना
था ही नहीं
वहां कभी कोई रिश्ता
बना  ही  नहीं
पर ये मन है
कि मानने को तैयार
ही नहीं
मुझे आज भी यकीन है
मेरे कुछ रिश्ते
वहीँ सो गए हैं
कुछ रिश्ते खो गए हैं

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

आंसू

                                  आंसू






                          आंसुओं में आज अपने, फिर नहा कर


                    मैं अपने दर्द का, इज़हार करना चाहती हूँ


                  दूर ही रहना ऐ खुशिओं,पास तुम आना नहीं


                मैं अभी कुछ और पल, इंतजार करना चाहती हूँ


                    आज तक पल छिन मिले जो,सब शूलों के दंश से


                    मैं शूल दंशों से,अपना श्रंगार करना चाहती हूँ


                   पीर का हर एक मनका,बांध के रखा था जो


                  मैं उसी माला की,भेंट चढ़ना चाहती हूँ


                बात जो हमने कही, वो कंटकों सी चुभ गयी


                 मैं अपनी कही हर बात, वापस लेना चाहती हूँ


                 रास्ता हमने चुना जो, आज मुश्किल हो गया


               अब  एक पल जो सुख मिले, तो मौत के ही पल मिले


                   मैं इसी अहसास को, जीवित रखना चाहती हूँ


                    आज तुमको, साथ में अपने रुला कर


                    मैं आंसुओं की आज फिर, बरसात करना चाहती हूँ


                     आंसुओं में आज अपने, फिर नहा कर


                   मैं अपने दर्द का, इज़हार करना चाहती हूँ



गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

मधुशाला के प्याले

                                                      



                                     उन खाली प्यालों से पूंछो



                                    कैसे रंग बदल आते हो ?



                                    सुख में सुर्ख़ सुनहरा नीला



                                    दुःख में ज़र्द दूधिया पीला



                                   आने वाले लोग वही हैं



                                   उनके अपने दर्द सही हैं



                                   उन खाली प्यालों से पूंछो



                                   कैसे बात छुपा जाते हो ?



                                   होंठों की लाली में मुसकन



                                   चेहरे पर चाहत की चमकन



                                   आँखों के डोरे पिघलाती



                                   प्याले पर प्याले मंगवाती



                                   उन खाली प्यालों से पूंछो



                                  कैसे दिल को छू आते हो?



                                  होंठों की लाली में दुःख है



                                  चेहरे की चाहत नफ़रत है



                                  आँखों के डोरे गीले हैं



                                  कैसे तुम्हे बता जाते हैं ?



                                  उन  खाली प्यालों से पूंछो

                                  कैसे राज़ जता जाते हैं ?
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