अहसास
आशुतोष ने फिर
उषा का घूँघट उठाया है.
लजा के उसने भी
चेहरा तो दिखया है.
सुहागन हो गयीं दिशाएं सारी
सिंदूर यूँ सजाया है.
पर
ओस की बूंदों का आंचल
दूब के सर से भी तो
तूने ही हटाया है,
क्या बात है दिवाकर
कोई मलिन विचार आया है.
क्या भूल गया प्रतिद्वंदी घन को,
क्या भूल गया प्रतिद्वंदी घन को,
जो कुछ करने पे आ जायेगा,
दूब को चूनर ओढ़ा उषा को ले जाएगा.
मैं तो सदा हद में रही,
मैं तो सदा हद में रही,
चाहे जितना भी ऊँची उड़ी.
तू भी जरा हद, बना ले अपनी
तू भी जरा हद, बना ले अपनी
नहीं तो आदमी बन जाएगा.
आदमी बन जाएगा.