अज़रबैजान यात्रा (भाग 2)
पिछली पोस्ट में आपने
अज़रबैजान देश के बारे में कुछ सामान्य बातें की थीं।
आज से अगले कुछ पोस्ट
में आपको अज़रबैजान की विस्तृत जानकारी देती हूँ हर वो जगह जो मैंने देखी है अपने
नजरिए से आपको दिखाने का प्रयास करूंगीं। ये हमारी एक बहुत छोटी सी यात्रा थी, मात्र 5 दिन की, हमारी यात्रा 21 मई से 25 मई तक की
थी, 26 मई को सुबह हम वापस आ गए थे। हमने अपना टिकेट और होटल
एक महीना पहले ही बुक कर दिया था। हमारी
फ्लाइट 21 मई को सुबह 6।33 पर अज़रबैजान एयरलाइंस की थी। चूंकि हम दो साल पहले ही ग्रेटर नोएडा में रहने
आए हैं एक तो बियाबान जंगल और दूसरी एअरपोर्ट से दूरी जिसमें यहाँ से एयरपोर्ट
पहुंचने में 2 घंटे तो लग ही जाते हैं फिर एअरपोर्ट पहुंच कर बड़ी भगदड़ हो जाती
है। हम ऐसा सोचते थे कि रात 11–12 बजे तक टैक्सी मिल जाती होगी उसके बाद मुश्किल होगी
लेकिन बहुत जल्दी एअरपोर्ट पहुँच कर भी क्या करेंगे। यही सोचते रात 1:30 टैक्सी
बुक की लेकिन यह क्या टैक्सी तो 5 मिनट में ही आ गई। अब क्या करें तो सोचा कि चलो
चलते हैं। हम दोनों 20 मई की रात 1:30 घर
से निकले सड़क एकदम खाली थी सो 2:30 पहुंच भी गए। हम लोगों के जल्दी पहुचने का एक
फायदा हुआ कि अज़रबैजान काउंटर पर भीड़ नहीं थी। लगभग 4 बजे सारी औपचारिकताएं पूरी
करके हम निश्चिंत हो गए, इस बार समय काफी मिल गया था तो
भागदौड़ और गहमागहमी से बच गए। 4 बजे लाउंज में
पहुंच कर आराम और कुछ चाय नाश्ता किया। 5:30 बजे लाउंज से निकले बोर्डिंग
के लिए ज्यादातर लोग अपनी सीटों में धंस चुके थे। हमने भी अपनी सीट पकड़ी बाहर की
तरफ बैठे सज्जन को अनुरोध करके उठाया और बैठ गए। यहाँ ये बताती चलूं कि टिकट तो
अप्रैल के पहले हफ्ते में हो गया था और इधर 28 अप्रैल को मेरा बांया पैर खौलती हुई
चाय से जल गया। घुटने के नीचे का हिस्सा और पंजा। फफोले भी निकले भयंकर कष्ट था।
उम्मीद पर दुनिया कायम है सो मैं भी रही। बहुत मनुहार के बाद 18-19 तारीख तक पैर
ने जाने की हामी भर दी। घाव कच्चा था कपड़े पहनने की मुश्किल थी फिर भी न मैंने,
न मेरे पैर ने हार मानी। आखिरकार 21 मई को भारतीय समयानुसार 10:30
बजे अज़रबैजान की राजधानी बाकू पहुंच गए। जल्दी ही सामान ले कर हम बाहर आ गए। हवाई
अड्डे से होटल तक की यात्रा बहुत मनोहारी थी, सड़क के दोनों
ओर जहां तक देखो सिर्फ हरियाली ही थी। यहाँ हमारे देश के विपरीत सड़कों पर न कहीं धूल थी न ही कूड़ा करकट।
हमारे देश के विपरीत यहाँ के दरख्तों और उनके नीचे उगने वाली घास और माटी का आपस
में घनिष्ठ प्रेम दिखा। हर दरख़्त के तने
तक फैली हरी घास मानों अपने देश की मिट्टी को अपने अंदर समेटे हो कहीं माटी का कोई
कण उड़ न जाए क्योंकि ये मिट्टी तो मेरे वतन की है। एक से डेढ़ घंटे में हम होटल
पहुंच गए होटल बहुत अच्छा था हर सुविधा थी। जल्दी ही फ्रेश हो कर हम निकल पड़े सैर
को। दोपहर के खाने के लिए पहुंचे माया रेस्टोरेंट,जैसा कि
आपको नाम से ही पता चल गया होगा ये इंडियन रेस्टोरेंट है। ये एक पार्क के दूसरे
कोने में स्थित है। पार्क का नाम पोर्ट बाकू पार्क है। यहाँ भारतीय शाकाहारी खाना उपलब्ध है। हमने
पहले से ही बुक कर लिया था वहाँ बफेट और अलाकार्ट मेनू दोनों थे हमने दाल रोटी
सब्जी रायता सलाद और साथ में स्वीट डिश खाई फिर बाहर निकल आए।
माया रेस्टोरेंट के
सामने सड़क के उस पार समुद्र तट और उस तट से सटी दुनियाभर के मशहूर डिजाइनर के
बड़े-बड़े शो रूम ऐसा लग रहा रहा था मानों किसी बहुत बड़े देश में पहुंच गए हैं
इतना छोटा देश आजाद हुए अभी 30 –33साल ही हुए हैं और इतनी प्रगति सोची समझी
नीतियां और पर्यटन को बढ़ावा की दिशा में किए गए कार्य दिखते हैं जिन्होंने जैसे
मुझे प्रभावित किया, औरों को भी जरूर ही किया होगा।
उस खूबसूरत फूलों और हरियाली से लदे पार्क में फोटो खिंचवाने से हम अपने आपको रोक
नहीं पाए फिर क्या शुरू हो गया फोटो सेशन बताती चलूं आम लोगों के विपरीत मुझे फोटो
खिंचवाना पसंद नहीं है फिर भी यादें संजोना तो बनता ही है।
इस पोस्ट में इतना ही
बाकू की आज की हसीन शाम का विवरण अगली पोस्ट में











सुन्दर वृत्तांत
जवाब देंहटाएंसुंदर तस्वीरें और रोचक यात्रा विवरण
जवाब देंहटाएंआभार अनिता जी 🙏🙏
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