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रविवार, 7 नवंबर 2010

समीकरण

समीकरण





याद नहीं पर जाने कब से सुनती आई हूँ.

सुहागिन औरतें रखती हैं निर्जला,

करवा चौथ का उपवास,

अपने पति की लम्बी आयु के लिए,

मैंने भी रखे कितने ही ...

केवल तुम्हारे नाम पर.

पर आज थोडा असहज महसूस कर रही हूँ,

सोचा सच आज बता ही दूँ.

मैंने रखे ये उपवास.

तुम्हारे दीर्घायु होने के लिए नहीं,

अपने निजी स्वार्थ वश.

क्योंकि जानती हूँ.

तुम्हारे बिना मैं हूँ ही नहीं.

पर कल ही मेरी पिछली कविता,

के जवाब में तुमने कहा.

इस धरती पर तुम्हार तुम होना,

सम्भव ही नहीं,

मेरे मैं हुए बिना.

सो अब से मैं ये उपवास रखूंगी तो सही,

पर अपनी लम्बी उम्र के लिए.

न की तुम्हारी.


(चित्र साभार गूगल के सौजन्य से)  


रविवार, 4 अप्रैल 2010

अन्वेषण


अन्वेषण





आज की इस दौड़ में

सब कुछ नया करने की होड़ में,

कितना कुछ बदल गया है.

असमंजस में पड़ गयी मैं,

जब सुना,

इतने बरसों बाद भी,

नयापन नहीं है प्रेम संवाद में,

डूब गया मन,

तत्क्षण ही  तम के ताल में.

ऊपर आने, उबराने के,

तलाशने लगा विकल्प.

एक कंचन  कौंध का  क्षीण सा संबल ले,

उत्प्लावित हो उठा.

निराशा के  निरीह पोखर से,

निर्वस्त्र बौखलाया सा.

आर्कमिडिज की भांति,

चीत्कार उठा मन

यूरेका, यूरेका, यूरेका,

क्योंकि पा लिया था उसने,

विज्ञान के माध्यम से

प्रेमाभिव्यक्ति में एक नयापन,

किंकर्तव्यविमूढ़ सा कह ही उठा,

मैं चंचल चपला, तुम आलाप बेचारे

मैं त्वरित रहूँ तू अनुचर हो जा रे

हैं दूर दूर पर साथ सदा रे

मैं समीकरण, तुम सिद्धांत  हमारे.



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