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रविवार, 20 सितंबर 2015

प्यास

प्यास

प्याज में मात्र
भोजन की सीरत सूरत स्वाद सुगंध
बदलने की कूबत ही नहीं
सत्ता परिवर्तन की भी क्षमता है.
प्याज और सरकार
एक दूसरे के पर्याय हैं.
एक जैसे गुण अवगुण
एक जैसे भूमिगत तलघरों की तरह
एक के भीतर एक
परत दर परत खुलना
गोपनीयता यथावत.
हर बार बढती जिज्ञासा
अंततः हाथ खाली के खाली
और ऑंखें नम.
नहीं जानती
प्याज को सत्ता का नाम दूँ
या सत्ता को प्याज
या दोनों का संमिश्रण व संश्लेषण कर
प्या--स कहूँ
क्योंकि ये प्यास है बड़ी.

रविवार, 25 अगस्त 2013

राजनीति इधर भी

राजनीति इधर भी

कभी अकड़ती इतराती
भाव खाती कोई सब्जी
अचानक बेचारी हो जाती
जब दूसरी दो चार सब्जियाँ
लजाती लड़खड़ाती गिर पड़ती,
हम उसे थाम लेते 
बस जाती वो
हमारी आँखों में
संकटमोचन बन,
पर अब वो बात नहीं
इसके पहले कि 
उपयुक्त समय जान
कोई लजाये, लड़खड़ाये, गिर पड़े.
भाव खाती सब्जी
सबको सहारा दे 
उठाती है अपने साथ.
ऊपर से देखने में
अलग अलग दल
श्रेणियाँ हैं इनकी
अब अंदर सब एक हैं
सब्जी का राजा आलू
गृह मंत्री टमाटर
वित्त मंत्री प्याज
फलों के शहंशाह आम
करते हैं मंत्रणा
एक वातानुकूलित कक्ष में
और पल भर में ही
गरीबी रेखा पर 
झूलता मेरा संसार
मेरा चूल्हा, चौका
कुपोषण के शिकार
साग भाजी को 
तकते मेरे बर्तन    
आ जाते हैं 
गरीबी रेखा के ऊपर
जानना चाहती हूँ
साग भाजी में राजनीति है
या राजनीति में साग भाजी
या हर साँस हर आस में राजनीति. 

रविवार, 18 अप्रैल 2010

राजनीति

राजनीति





राजनीति मेरे रग रग में बसी है

लूट, खसोट, सेंधमारी और क़त्ल करवाए मैंने.

फिर उन्हीं  के आशियाने भी बसवाये मैंने.

हर राजनीतिज्ञ की तरह  अपने इर्द गिर्द,

अभेद्य सुरक्षा आवरण भी रचाए मैंने.

हर सुरक्षा चूक की तरह,

यहाँ भी एक चूक हो गयी.

मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल हो गयी.

करवाती थी, लोगो से, लोगो के लिए, जो मैं.

अपने लिए अपने आप ही कर बैठी वो मैं.

तख्ता पलट गया मेरा.

मोहल्ले की संसद में मजबूर हो गयी मैं.

आम राजनेता की तरह, मायूस हो नहीं,

बड़े अभिमान से नैतिक जिमेद्दारी भी ले बैठी मैं.

आज तक कर रही हूँ,

अपनी भूल का प्रायश्चित मैं.

जो लोग किया करते थे,

कभी दर पर मेरे.

वो आमरण अनशन आज भी किये बैठी हूँ मैं.

जो किया करती थी कभी,

हजारों दिलों पर राज, मैं.

तेरे दिल के द्वार पर

दरबान बनी बैठी हूँ, मैं.

हाँ, इस प्रेम की राजनीति में,

जो कुछ कबूला है मैंने,

वो सच है.

पर कैसे गिर गयी,

मेरी मग़रूर सरकार.

इसका मुझे आज भी अचरज है.





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