प्यास
प्याज में मात्र
भोजन की सीरत सूरत स्वाद सुगंध
बदलने की कूबत ही नहीं
सत्ता परिवर्तन की भी क्षमता है.
प्याज और सरकार
एक दूसरे के पर्याय हैं.
एक जैसे गुण अवगुण
एक जैसे भूमिगत तलघरों की तरह
एक के भीतर एक
परत दर परत खुलना
गोपनीयता यथावत.
हर बार बढती जिज्ञासा
अंततः हाथ खाली के खाली
और ऑंखें नम.
नहीं जानती
प्याज को सत्ता का नाम दूँ
या सत्ता को प्याज
या दोनों का संमिश्रण व संश्लेषण कर
प्या--स कहूँ
क्योंकि ये प्यास है बड़ी.
दोनों का संश्लेषण ,मुझे तो ,अधिक उपयुक्त लग रहा है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 21 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यबाद यशोदा जी.
हटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-09-2015) को "जीना ही होगा" (चर्चा अंक-2105) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी.
हटाएंbahut achha likhin hain...
जवाब देंहटाएंकितने सत्ता परिवर्तन करा चुका है ये प्याज ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया पढ़ के ...
ये तो जादू का पिटारा बना गया है
जवाब देंहटाएंवाह वाह - अद्भुत
जवाब देंहटाएंवाकई..प्याज के कारण सरकारें गिरती सम्भलती रही हैं..और सत्ता की प्यास भी रुलाती है..
जवाब देंहटाएंसुंदर, सटीक और सामयिक....कभी रुलाया, कभी गिराया अब तो घोटाले की वजह भी बन गया है प्याज़
जवाब देंहटाएंबढ़िया ताल मेल बिठ्या है आपने प्याज और सत्ता का ।
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है..!
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