ख्वाब
झलती रही पंखा साँझ सारी शाम,
रात बोझिल हुई चुप चाप सो गई.
रात बोझिल हुई चुप चाप सो गई.
मुंह ढांप के कुहासे की चादर से,
हवा गुमनाम जाने किसकी हो गई.
चाँद ने ली करवट बांहों में थी चांदनी,
रूठी छूटी छिटकी ठिठकी वो गई.
बदली के आंचल की उलझने की हठ,
आकाश की कलँगी भिगो गई.
बादल के बाहुपाश में आ कर दामिनी,
मन के सारे गिले शिकवे भी धो गई.
राग ने रागिनी को धीमे से जो छुआ,
वो बही बह के कानों में खो गई.
आँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
सुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
सज संवर के पंखुरियों पे बैठी थीं जो,
आज वो ओस की बूंदें भी रो गईं.
आज वो ओस की बूंदें भी रो गईं.
मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट काम अधुरा है
जितना भी भार हो जिस्म पे ... धोना होता ही है ... यही जीवन है ...
जवाब देंहटाएंक्या बात है....बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना. मन को मुग्ध करती निकली .
जवाब देंहटाएंBahut Sundar, Antim Do Line Sach Kah Gayin
जवाब देंहटाएंसधी, सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएं"आखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे
जवाब देंहटाएंसुबह नमक की खेती के बीज बो गयी "..........संवेदनशील और खूबसूरत
वाह .......
बहुत सुन्दर भाव लिए ... अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपको नववर्ष 2014 की मंगल कामनाएं...
fir se lout aayi hun ....Rachna ji aapka blog tajgi liye...khwab pyaara sa !
जवाब देंहटाएंप्रभावपूर्ण
जवाब देंहटाएंवाह !! बहुत सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई ----
आग्रह है--
वाह !! बसंत--------
पहला शेर, दूसरा और अंतिम काबिले तारीफ....मतलब गजल के बढ़िया और
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली पंक्तियां हैं
☆★☆★☆
झलती रही पंखा साँझ सारी शाम,
रात बोझिल हुई चुप चाप सो गई.
मुंह ढांप के कुहासे की चादर से,
हवा गुमनाम जाने किसकी हो गई.
आँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
सुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
वाह ! वाऽह…! और.. वाऽऽह…!
बहुत जबरदस्त लिखा है...
लेकिन आदरणीया रचना दीक्षित जी
नवंबर के बाद से कोई नई कविता नहीं...
यह तो ज़्यादती है न !
:)
आशा है , सपरिवार स्वस्थ-सानंद हैं आप !
बहुत बहुत मंगलकामनाएं !
सादर...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अंतिम पंक्ति कुछ इस तरह हो तो अच्छा हो-
जवाब देंहटाएंपर देखो मेरी हिम्मत उसको भी ढो गई
बहुत ज्ञान वर्धक आपकी यह रचना है, मैं स्वास्थ्य से संबंधित कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो यहां पर click Health knowledge in hindi करें और इसे अधिक से अधिक लोग के पास share करें ताकि यह रचना अधिक से अधिक लोग पढ़ सकें और लाभ प्राप्त कर सके।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआदरणीया
प्रणाम !
बहुत समय बाद पुनः आया हूं...
नई रचना कब !?
सादर शुभकामनाओं सहित...