आग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
आग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 9 जून 2013

आग

आग

सुलग रही हूँ जाने कब से
समझने लगी थी
नाते रिश्ते दुनिया जबसे
कभी महकती
सबको महकाती
खुशबू बिखेरती
कभी धुआं धुआं
भीतर बाहर सब तरफ
कालिख ही कालिख
जलना जलना सुलगना
मेरी आदत हो गई
उम्र के इस पड़ाव पर सुलग.
नहीं जल रही हूँ आज भी
पर एक लौ की तरह
नहीं छोड़ती अब धुआं
सुगंध या दुर्गंध
धुन आज भी वही
जलना जलाना
अपने भीतर बाहर
और आसपास
फैलाना तो सिर्फ प्रकाश
राह दिखाना अँधेरा दूर करना
कभी मैं अगरबत्ती सी
जला करती थी
आज दिए सी जल रही हूँ.

रविवार, 15 जनवरी 2012

आरम्भ


आरम्भ


सुना है
सदियों, सदियों, सदियों पहले
धरा पर कुछ था
तो था 
विस्फोट, आग, धुआं
तपिश और जलन.      
कहते हैं 
शायद वही आरंभ था 
जीवन का.
आज भी 
धरा पर कुछ है तो 
विस्फोट, आग, धुआं, 
तपिश और जलन 
कहीं ये फिर आरम्भ तो नहीं 
किसी अंत का ?     
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...