आग
सुलग रही हूँ जाने कब से
समझने लगी थी
नाते रिश्ते दुनिया जबसे
कभी महकती
सबको महकाती
खुशबू बिखेरती
कभी धुआं धुआं
भीतर बाहर सब तरफ
कालिख ही कालिख
जलना जलना सुलगना
मेरी आदत हो गई
उम्र के इस पड़ाव पर सुलग.
नहीं जल रही हूँ आज भी
पर एक लौ की तरह
नहीं छोड़ती अब धुआं
सुगंध या दुर्गंध
धुन आज भी वही
जलना जलाना
अपने भीतर बाहर
और आसपास
फैलाना तो सिर्फ प्रकाश
राह दिखाना अँधेरा दूर करना
कभी मैं अगरबत्ती सी
जला करती थी
आज दिए सी जल रही हूँ.
आदरणीया रचना जी सुप्रभात हमारी एक निश्चित भूमिका है आप अपनी भूमिका में खरी हैं तभी आप सर्वश्रेष्ठ हैं और नियति बदली जा नहीं सकती
जवाब देंहटाएंkhud jalna diye ki tarah aur doosron ko roshnee dena ....sundar prastuti
जवाब देंहटाएंसुप्रभात - परोपकार कष्ट दायक होता है जो बिरले ही कर पाते हैं - प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदीये की तरह हर कोई कहाँ जल पाता है दूसरों का तम हरने के लिए. बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंकभी मैं अगरबत्ती सी
जवाब देंहटाएंजला करती थी
आज दिए सी जल रही हूँ
अनुकरणीय अभिव्यक्ति
सादर ....
वाह ! सुगंध न सही, प्रकाश ही सही।
जवाब देंहटाएंआग का काम भी परोपकारी है।
सुलगते सुलगते कब आग लग जाती है, कहाँ पता लगता है।
जवाब देंहटाएंजल कर रोशनी देना हमारी प्रकृति है सुंदर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (10.06.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर किया जायेगा. कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंधन्यबाद नीरज मेरी कविता को ब्लॉग प्रसारण में शामिल करने हेतु.
हटाएंसुन्दर रचना .... सुंदर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंlatest post: प्रेम- पहेली
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जीवन के समाप्त होने तक धुँआ देने से तो जलकर प्रकाश फैलाना अधिक सार्थक है!! बहुत अच्छी रचना!!
जवाब देंहटाएंदिये की तरह जल कर प्रकाश फैलाना ही जीवन की सार्थकता है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंएक संपूरन जीवन यात्रा सुगंधमय, प्रकाशमय । स्व की सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत।
जवाब देंहटाएंशानदार,बहुत उम्दा प्रेरक प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
दिए की तरह जलकर प्रकाश फैलाना जीवन की सार्थकता है
जवाब देंहटाएं... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ... आभार
मंगल कामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंप्रकाश फैलाती सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंउत्तम अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअद्भुत कृति ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंदूसरों को राह तो दिए ही दिखाते हैं ...
जवाब देंहटाएंउनकी तरह जलना ही जीवन है ... फिर चाहे रोइश्ते जलें या कुछ और ...
खुद जलना, दूसरों को प्रकाश देना! यही दीपक का काम है!
जवाब देंहटाएंढ़
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थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!
कभी मैं अगरबत्ती सी जलती थी अब दीपक सी जलती हूँ । दोनो स्थितियों में मानवता का पूजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
आदरणीया रचना जी खूबसूरत... नारी मन का बहुत सुन्दर वर्णन ..इसी लिए तो पूज्य हैं ...
जवाब देंहटाएंजलना जलाना अपने भीतर और आस पास
फैलाना तो सिर्फ प्रकाश
बहुत खूब
भ्रमर 5
बहुत खूबसरत एहसास लिए हुए .....
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जवाब देंहटाएंकभी मैं अगरबत्ती की तरह जला करती थी
जीवन के संघर्ष की गहन अनुभूति
सुंदर बेहतरीन रचना
बधाई
आग्रह है- पापा ---------
नारी मन का बहुत सुन्दर वर्णन ....रचना खूबसूरत
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