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रविवार, 21 अक्टूबर 2012

उड़ान

उड़ान



मिलता है जब भी 
कोई संदेश सहसा 
सुखद या दुखद 
जाग उठती है उत्कंठा 
वहाँ सम्मिलित होने की 
सबसे मिलने की 
सुख दुःख साझा करने की 
तैयार होती हूँ अकेले ही 
जानती ये भी हूँ 
सब कुछ बदल गया होगा 
शहर, सड़कें, लोग
आरक्षण, ई आरक्षण, 
तत्काल आरक्षण,
दलालों के बीच भटकती, 
पिसती लौट आती हूँ   
खोलती हूँ विन्डोज़ 
हो जाती हूँ सवार माउस पर 
जकड़ती हूँ उँगलियों से कर्सर को 
खोलती हूँ गूगल मैप्स 
और फिर ...
मेरा गंतव्य शहर, 
मुहल्ला, गली मकान...
दस्तक देती हूँ कर्सर से
खुल जाती हैं मन की 
किवडियां, किवडियां,
गले मिलती हूँ सबसे 
चाची, मौसी, मामी, भाभी, भईया   
हँसती हूँ, मुस्कुराती हूँ, 
खिलखिलाती हूँ 
इस बीच...
आँखों की कोरों में दबे आँसू
टपकते हैं टप्प टप्प ...
कोई भांप न ले 
मेरे मन की व्यथा 
बंद करती हूँ विन्डोज़, 
खोलती हूँ खिड़की  
ओढ़ती हूँ चेहरे पर शालीनता
और बस ...
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