उड़ान
मिलता है जब भी
कोई संदेश सहसा
सुखद या दुखद
जाग उठती है उत्कंठा
वहाँ सम्मिलित होने की
सबसे मिलने की
सुख दुःख साझा करने की
तैयार होती हूँ अकेले ही
जानती ये भी हूँ
सब कुछ बदल गया होगा
शहर, सड़कें, लोग
आरक्षण, ई आरक्षण,
तत्काल आरक्षण,
दलालों के बीच भटकती,
पिसती लौट आती हूँ
खोलती हूँ विन्डोज़
हो जाती हूँ सवार माउस पर
जकड़ती हूँ उँगलियों से कर्सर को
खोलती हूँ गूगल मैप्स
और फिर ...
मेरा गंतव्य शहर,
मुहल्ला, गली मकान...
दस्तक देती हूँ कर्सर से
खुल जाती हैं मन की
किवडियां, किवडियां,
गले मिलती हूँ सबसे
गले मिलती हूँ सबसे
चाची, मौसी, मामी, भाभी, भईया
हँसती हूँ, मुस्कुराती हूँ,
खिलखिलाती हूँ
इस बीच...
आँखों की कोरों में दबे आँसू
टपकते हैं टप्प टप्प ...
कोई भांप न ले
मेरे मन की व्यथा
बंद करती हूँ विन्डोज़,
खोलती हूँ खिड़की
ओढ़ती हूँ चेहरे पर शालीनता
और बस ...
और बस ...
Alag.. ek dum alag.. jaise kewal bas aap hi likh pati hain.. kehna chahiye ki 'Rachna marka Rachna' :)
जवाब देंहटाएंजो डेस्कटॉप थीम है वही नज़र आये, भीतर क्या??? कौन समझे...कौन जाने...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति...
सादर
अनु
आमने सामने बातें ( चैट ) करना तो कंप्यूटर से संभव हो ही गया है . जल्दी ही रिश्तेदारों से गले मिलना भी यूँ ही हुआ करेगा .
जवाब देंहटाएंफिर आंसुओं को पलकों के कोनो में ही वास मिलेगा .
घूम चुका, फिर वहीं आ गया..
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत , हर एक की यही कशमकश है . हर कोई अपनों से मिलने को लालायित मगर जीवन की आपाधापी ने पैरों में बेड़ियाँ सी डाल रखी है .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंजमाना कहाँ पहुच गया सोचा भी नही था.... ..सुन्दर भाव..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,एक अलग हटकर सुंदर प्रस्तुति,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम
गूगल का उड़न खटोला!
जवाब देंहटाएंढ़
--
ए फीलिंग कॉल्ड.....
man to bahut kuch chahta hai lekin kya karen man maar ke jiina padta hai ....
जवाब देंहटाएंइस विन्डोज़ ने खिडकियों को बंद कर दिया है.. बहुत दुःख होता है.. और आपने जिस संजीदगी से इसे अभिव्यक्त किया है वह सचमुच प्रभावित करता है!!
जवाब देंहटाएंAah...kya kahun? Kitnee bar hame apne man ke jharokhe band karne padte hain! Nihayat sundar rachana!
जवाब देंहटाएंपर अपना चेहरा ... आंसुओं से सराबोर
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
जीवन-वर्तुल यूँ ही घूमे...
जवाब देंहटाएंविन्डोज़ हो जाती हूँ सवार माउस पर जकड़ती हूँ उँगलियों से कर्सर को खोलती हूँ गूगल मैप्स और फिर ... मेरा गंतव्य शहर, मुहल्ला, गली मकान..
जवाब देंहटाएंआज शायद यही उड़ान रह गयी है .... आँसू आए भी तो न कोई देख पाता है न समझ पाता है ... फिर पोंछने का तो सवाल ही नहीं ... इन विंडोस के सामने मन के पट तो बंद ही रह जाते हैं .... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
duniyan kitni gol aur chhoti ho gayi hai na aansuo ki tarah gol-gol aur chhoti....kabhi to bindu maatr si hi dikhayi deti hai aur nahi bhi...in ansuo ki tarah..
जवाब देंहटाएंmarmsparshi end.
बिल्कुल सच कहा ...
जवाब देंहटाएंइस एक विन्डो के कारण दुनिया की ओर खुलते सारे विन्डोज़ जैसे बंद हो गए।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता।
bahut hi sundar aur maarmik abhivyakti.... Rachana ji
जवाब देंहटाएंsaadar
पल पल बदलते चहरों की व्यथा
जवाब देंहटाएंएक अलग और अद्भुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंतकनीक वाली कविता
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