रविवार, 21 अक्तूबर 2012

उड़ान

उड़ान



मिलता है जब भी 
कोई संदेश सहसा 
सुखद या दुखद 
जाग उठती है उत्कंठा 
वहाँ सम्मिलित होने की 
सबसे मिलने की 
सुख दुःख साझा करने की 
तैयार होती हूँ अकेले ही 
जानती ये भी हूँ 
सब कुछ बदल गया होगा 
शहर, सड़कें, लोग
आरक्षण, ई आरक्षण, 
तत्काल आरक्षण,
दलालों के बीच भटकती, 
पिसती लौट आती हूँ   
खोलती हूँ विन्डोज़ 
हो जाती हूँ सवार माउस पर 
जकड़ती हूँ उँगलियों से कर्सर को 
खोलती हूँ गूगल मैप्स 
और फिर ...
मेरा गंतव्य शहर, 
मुहल्ला, गली मकान...
दस्तक देती हूँ कर्सर से
खुल जाती हैं मन की 
किवडियां, किवडियां,
गले मिलती हूँ सबसे 
चाची, मौसी, मामी, भाभी, भईया   
हँसती हूँ, मुस्कुराती हूँ, 
खिलखिलाती हूँ 
इस बीच...
आँखों की कोरों में दबे आँसू
टपकते हैं टप्प टप्प ...
कोई भांप न ले 
मेरे मन की व्यथा 
बंद करती हूँ विन्डोज़, 
खोलती हूँ खिड़की  
ओढ़ती हूँ चेहरे पर शालीनता
और बस ...

24 टिप्‍पणियां:

  1. Alag.. ek dum alag.. jaise kewal bas aap hi likh pati hain.. kehna chahiye ki 'Rachna marka Rachna' :)

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  2. जो डेस्कटॉप थीम है वही नज़र आये, भीतर क्या??? कौन समझे...कौन जाने...

    बेहतरीन अभिव्यक्ति...
    सादर
    अनु

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  3. आमने सामने बातें ( चैट ) करना तो कंप्यूटर से संभव हो ही गया है . जल्दी ही रिश्तेदारों से गले मिलना भी यूँ ही हुआ करेगा .
    फिर आंसुओं को पलकों के कोनो में ही वास मिलेगा .

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  4. बहुत खुबसूरत , हर एक की यही कशमकश है . हर कोई अपनों से मिलने को लालायित मगर जीवन की आपाधापी ने पैरों में बेड़ियाँ सी डाल रखी है .

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  5. जमाना कहाँ पहुच गया सोचा भी नही था.... ..सुन्दर भाव..

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,एक अलग हटकर सुंदर प्रस्तुति,,,,,,

    RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम

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  7. इस विन्डोज़ ने खिडकियों को बंद कर दिया है.. बहुत दुःख होता है.. और आपने जिस संजीदगी से इसे अभिव्यक्त किया है वह सचमुच प्रभावित करता है!!

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  8. Aah...kya kahun? Kitnee bar hame apne man ke jharokhe band karne padte hain! Nihayat sundar rachana!

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  9. पर अपना चेहरा ... आंसुओं से सराबोर

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  10. विन्डोज़ हो जाती हूँ सवार माउस पर जकड़ती हूँ उँगलियों से कर्सर को खोलती हूँ गूगल मैप्स और फिर ... मेरा गंतव्य शहर, मुहल्ला, गली मकान..

    आज शायद यही उड़ान रह गयी है .... आँसू आए भी तो न कोई देख पाता है न समझ पाता है ... फिर पोंछने का तो सवाल ही नहीं ... इन विंडोस के सामने मन के पट तो बंद ही रह जाते हैं .... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  11. duniyan kitni gol aur chhoti ho gayi hai na aansuo ki tarah gol-gol aur chhoti....kabhi to bindu maatr si hi dikhayi deti hai aur nahi bhi...in ansuo ki tarah..

    marmsparshi end.

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  12. इस एक विन्डो के कारण दुनिया की ओर खुलते सारे विन्डोज़ जैसे बंद हो गए।
    अच्छी कविता।

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  13. एक अलग और अद्भुत भावपूर्ण रचना...

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