चंद सहमे हुए से लम्हे
कुछ भीगे हुए से पल
इन लरज़ती बुलंदियों पर
क्या होगा हशर अपना
पाने को मुकम्मिल मुकाम
आग पर चलने लगे हैं हम
कब बुलंदियों से
यूँ खाक़ में मिले हम
यूँ खाक़ में मिले हम
इस मुश्किल सफ़र में भी
खुश रहने लगे हैं हम
क्या बुलंदियां हो
या खाक़ हो जमीं की
पाने को चंद खुशियाँ
समझने लगे हैं हम
सहमे हुए हों लम्हें
या भीगे हुए हों पल
वक़्त की दहलीज़ पर
अब पलने लगे हैं हम
भरी हुई संवेदना से परिपूर्ण । आभार ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना.....एक स्पष्ट सोच....एक गहरी बात......!!
जवाब देंहटाएंइस मुश्किल सफ़र में भी खुश रहने लगे हैं हम मुश्किल सफ़र आसान हो और खुशियाँ हमेशा दामन भारती रहें ..शीर्षक भी दें..
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनायें ..!!
सहमे हुए हों लम्हें
जवाब देंहटाएंया भीगे हुए हों पल
वक़्त की दहलीज़ पर
अब पलने लगे हैं हम...sahme hue lamho me bhi aap khush to hai..wahi main cheez hai..khushi...ek achhi rachna...
उन खाली प्यालों से पूंछो कैसे राज़ जता जाते हैं ?
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी!
- सुलभ सतरंगी (यादों का इन्द्रजाल...)
bhavpoorna rachna
जवाब देंहटाएंइस मुश्किल सफ़र में भी खुश रहने लगे हैं हम मुश्किल सफ़र आसान हो और खुशियाँ हमेशा दामन भारती रहें
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