मेरी बेटियाँ
इस दुनिया में पहली बार जब आयीं थीं वो नन्हीं सी
उंगलियाँ।
आने से उनके यूँ लगा फूल बरसा रहीं थीं,
वादियाँ,
जिस तरफ प्यार से उठती थीं, वो नन्हीं सी
उंगलियाँ।
आने को उनके पास तरसतीं थीं,
तितलियाँ.
गालों पे मेरे जब प्यार से जब चलती थीं वो नन्हीं सी
उंगलियाँ।
आखों में उनकी होती थी गज़ब की वो
शोखियाँ।
गोदी में मेरे सर रख के मचलती थीं जब, वो नन्हीं सी
उंगलियाँ।
पल भर में ही खो जाती थीं वो नाज़ुक सी,
सिसकियाँ
हाथों में अपने थाम के,वो नन्हीं सी
उंगलियाँ।
मैं देखती थी अपलक, उनकी
अठखेलियाँ
कितनी जल्दी जवान हो गयी, वो नन्हीं सी
उंगलियाँ।
मेरी बाँहों में बाहें डाल कर अब गिराती हैं
बिजलियाँ
हमको साथ देख कर अब उठतीं हैं,न जाने कितनी ही
उंगलियाँ।
कहती हैं, वो देखो जा रही हैं कुछ हमउम्र सी,
उंगलियाँ
bhavna pradhan rachna
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
कोमल कोमल बेटियों के प्रति कोमल कोमल भाव ....सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी कविता।
जवाब देंहटाएंसादर
wow... so beautiful... bilkul ek maa-beti ke rishte jaisi...
जवाब देंहटाएंthank you so much... mujhe bhi meri maa ki ungaliyon ka ahsaas sa ho raha hai...
:)
वाह …………हम उम्र सी सहेलियाँ …………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गुद्गुदा देने वाली कविता...:)
जवाब देंहटाएंमाँ के ह्रदय के खूबसूरत उद्गार..!!
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