सबक
हर मंजिल की आखिरी सीढ़ी
जब पहली सीढ़ी होगी
प्रगति के लिए यही एक अबूझ पहेली होगी
हर फ़तह की कामयाबी में अगर ईमानदारी होगी
वही फ़तह हमारी कामयाबी होगी
हर बार हार अगर तुम्हारी होगी
तो तुम्हारी जीत इसी हार की मेहरबानी होगी
हर वक़्त बातें अगर वही पुरानी होंगी
उन्हीं के सबब से सब परेशानी होंगी
प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
जवाब देंहटाएंसंजय जी ने ठीक कहा ऐसी कविताएं रोज़ पढ़ने को नहीं मिलतीं।
जवाब देंहटाएंएक बेहद अच्छी कविता।
सादर
सार्थक प्रस्तुति... आभार...
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.