बचपन की चंचल गलियों में
कल रात बहुत बहकी थी मैं
सारा आलम घूम लिया पर
अपनी गलियों तक न पहुंची थी मैं
उन गलियों सड़कों चौराहों पर
कल रात बहुत सहमी थी मैं
सारे प्रतिबंधों को तोड़
रात अपने आँगन पहुँची थी मैं
सारा आँगन घूम-घूम कर
फिर अपनों में चहकी थी मैं
घर के हर सूने कोने की
सांसों में महकी थी मैं
ant bhalaa so bhalaa, kaavy-kalaa kaa nikhaar karen.
जवाब देंहटाएंरचना didi
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,