आंसुओं में आज अपने, फिर नहा कर
मैं अपने दर्द का, इज़हार करना चाहती हूँ
दूर ही रहना ऐ खुशिओं,पास तुम आना नहीं
मैं अभी कुछ और पल, इंतजार करना चाहती हूँ
आज तक पल छिन मिले जो,सब शूलों के दंश से
मैं शूल दंशों से,अपना श्रंगार करना चाहती हूँ
पीर का हर एक मनका,बांध के रखा था जो
मैं उसी माला की,भेंट चढ़ना चाहती हूँ
बात जो हमने कही, वो कंटकों सी चुभ गयी
मैं अपनी कही हर बात, वापस लेना चाहती हूँ
रास्ता हमने चुना जो, आज मुश्किल हो गया
अब एक पल जो सुख मिले, तो मौत के ही पल मिले
मैं इसी अहसास को, जीवित रखना चाहती हूँ
आज तुमको, साथ में अपने रुला कर
मैं आंसुओं की आज फिर, बरसात करना चाहती हूँ
आंसुओं में आज अपने, फिर नहा कर
मैं अपने दर्द का, इज़हार करना चाहती हूँ
आंसुओं में आज अपने, फिर नहा कर
जवाब देंहटाएंमैं अपने दर्द का, इज़हार करना चाहती हूँ
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है रचना की !
दर्द को अब दर्द होने लगा ,
दर्द खुद मेरे घाव धोने लगा ,
badhai !aur dhnywad
mere blog pr khubsurat comment ke liye !
दर्द बहुत थे भुला दिए सब,
जवाब देंहटाएंभूल न पाए वे बह निकले ,
आंसू बन कर.
कुछ रिश्ते हो गए हैं
जवाब देंहटाएंउस चौखट के अंदर
सूनी दीवार पर लगी
पुरानी खूंटी पर लटके
छोड़ आयी थी कुछ रिश्ते
वो रिश्ते खो गए हैं
रचना जी बहुत सुन्दरता से भाव पिरोये हैं आपने .....!!
बात जो हमने कही, वो कंटकों सी चुभ गयी
जवाब देंहटाएंमैं अपनी कही हर बात, वापस लेना चाहती हूँ
bahut sundar.
मन को छूती रचना.
जवाब देंहटाएंरचना जी बहुत सुन्दरता से भाव पिरोये हैं आपने .....!!
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