बुधवार, 2 दिसंबर 2009

छल

छल



शांत मन में उठती लहरें


कभी ऊँची, कभी निष्प्राण,


कभी उद्विग्नता की हद को पर करती


जाने क्यों रहने लगी बीमार मैं


जाने किस किस से बेचार मैं


साधने को इस असाध्य रोग


जाने कितने पीर, हकीम, अल्लाह


वल्लाह !


बदल डाले मैंने


और इक तुम थे कि


छलते रहे मुझे सारी उम्र


किसी बिना डिग्री के


झोलाछाप डाक्टर की तरह

15 टिप्‍पणियां:

  1. और इक तुम थे कि


    छलते रहे मुझे सारी उम्र


    किसी बिना डिग्री के


    झोलाछाप डाक्टर की तरह


    बहुत सुंदर कविता ....... इन पंक्तियों ने मन मोह लिया......

    जवाब देंहटाएं
  2. रचना जी,

    दर्दबयानी जब रूह को छू जाये ऐसा तब ही होता है जब कोई स्त्री व्यक्त करती है(अक्सर स्त्री को दर्द सहने के लिये ही माना जाता है) :-

    जाने कितने पीर, हकीम, अल्लाह
    वल्लाह !
    बदल डाले मैंने
    और इक तुम थे कि
    छलते रहे मुझे सारी उम्र

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह रचना जी, कितनी खूबसूरत रचना लिखी है।
    अन्तिम पंक्तियाँ तो बेमिसाल हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. और इक तुम थे कि


    छलते रहे मुझे सारी उम्र


    किसी बिना डिग्री के


    झोलाछाप डाक्टर की तरह
    क्या बात है. गज़ब उपमा दी है.

    जवाब देंहटाएं
  5. छलते रहे मुझे सारी उम्र
    किसी बिना डिग्री के .....
    किस जख्म का टांका टूटा,
    और बह चला दर्द ;;;;;;;
    जिसके मूल में छल था !!
    बता दिया ..डरी नही !!!
    बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  6. और इक तुम थे कि
    छलते रहे मुझे सारी उम्र
    किसी बिना डिग्री के
    झोलाछाप डाक्टर की तरह ...

    दर्द को सिमेट लिया है इस रचना में ....... कुछ दर्द हमेशा हमेशा की लिए होते हैं ........

    जवाब देंहटाएं
  7. और इक तुम थे कि
    छलते रहे मुझे सारी उम्र
    किसी बिना डिग्री के
    झोलाछाप डाक्टर की तरह ...

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, हर पंक्ति जाने कितना कुछ कहते हुये ।

    जवाब देंहटाएं
  8. रचना जी,
    रिश्तों के छल कपट और फरेब
    आपकी 'सडक' रचना की तरह
    जीवन में कब किस मोड पर आ जायें
    कौन कह सकता है...
    वैसे मेरा नज़रिया कुछ यूं है..

    ये सोच के शक को कभी दिल में जगह न दी,
    बुनियाद तो यकीन है, रिश्ता कोई भी हो..

    अपनी भावनाओं को सशक्त शब्दों में प्रस्तुत करने के लिये
    बधाई स्वीकार करें.....
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  9. shukria,
    kavita ki antim panktiyan kamal ki hain aur sadekein dharmnirpeksh hoti hain ....baat hai.

    जवाब देंहटाएं
  10. रचना जी
    धोखा खाए मन की उद्विग्नता और बेचैनी का चित्र खींच दिया है .

    जवाब देंहटाएं
  11. और इक तुम थे कि


    छलते रहे मुझे सारी उम्र


    किसी बिना डिग्री के


    झोलाछाप डाक्टर की तरह
    ye panktiyaan saari rachna ko hi samet layi bahut behtrin ,rachna ji ye bahut pyari rachna hai ,ati uttam ,chhalna kisi ka asahniye hota hai

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर कविता ....... इन पंक्तियों ने मन मोह लिया......

    जवाब देंहटाएं
  13. रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए

    जवाब देंहटाएं

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