अब से रावण नहीं मरेगा
कहते हैं, रावण व्यथित नहीं होता
मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र
दसग्रीव
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
अपराधी हूँ ,
हाँ! मैं अपराधी हूँ...
पर मात्र एक
अक्षम्य अपराध
सीता हरण का
पर यहाँ तो होता है
प्रतिदिन
न जाने कितनी ही सीताओं का अपहरण
फिर दुस्श्शासन बन चीर हरण,
करती हैं वो, मरण का
रोज ही वरण
एक अपराध का दंड मृत्यु
सौ अपराध का दंड मृत्यु
फिर क्यों ???
मैं एक अपराध के लिए
युग युगान्तरों तक जलूं
मैं, दशकंधर सबने देखा है
तुम सब कितने सर, किसने देखा है
मैं, लंकेश, लंकापति, दशानन
व्यथित हूँ !!!
मैं रावण हूँ
पर रामायण बदलने न दूंगा
अब मैं रावणों के हांथों नही मरूँगा
ये प्रण लेता हूँ
अब न मरुँगा,
अब न जलूँगा
जाओ ढूंढ़ लाओ,
मात्र एक राम मेरे लिए
तब तक मैं यहीं प्रतीक्षारत हूँ
मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
अपराधी हूँ ,
पर सिर्फ राम का.
आपने बहुत अच्छा लिखा हैं.
जवाब देंहटाएंआपके इस ब्लॉग पोस्ट से बेचारे रावण को कुछ तो तसल्ली हुयी होगी.
हा हाहा हा.
(वैसे इतनी देर रात गए ब्लॉग पोस्ट की हैं आपने.......??????? सॉरी, मेरी इस बात का बुरा मत मानियेगा, मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया हैं.)
बहुत बढ़िया,
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत विचारणीय कविता...
जवाब देंहटाएंसच है...आज हर कोई रावन बना फिर रहा है....और उसे सजा भी नहीं होती....अच्छी विचारणीय रचना ...
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिवेश का बहुत अच्छा विश्लेषण किया है ।
जवाब देंहटाएंआज चारों ओर रावण ही रावण नज़र आते हैं ।
राम बनकर कोई दिखलाये to जाने ।
अपराधी हूँ ,
जवाब देंहटाएंपर सिर्फ राम का.
अदम्य सत्य है ये...
बहुत बहुत बहुत अच्छी कविता..उतना ही स्निग्ध विषय..
bahut hi gahan arthon ko prastut kiya....vicharniye
जवाब देंहटाएंरावण ने ये माना तो सही की वो राम का अपराधी है ...!
जवाब देंहटाएंएक विचरणीय कविता. वैसे आज के युग के रावण और शुपंखाओ ने मारीच, खर और दूषण के साथ मिल कर राम और सीता को हाशिए पर भेज दिया है.
जवाब देंहटाएंजाओ ढूंढ़ लाओ,
जवाब देंहटाएंमात्र एक राम मेरे लिए....
एक सुन्दर वैचारिक कविता! जिन्हें दण्ड देने का अधिकार प्राप्त है आज वे स्वयं ही अपराधी बनते जा रहे हैं. जिनसे न्याय की अपेक्षा है वे स्वयं ही स्वार्थ वश अन्याय पर उतारू हैं.
वैसे एक बात यह भी है कि रावण तो रोज पैदा हो जाते हैं किन्तु राम युगों युगों में एक बार ही पैदा होते हैं. सभी को पुनः एक बार राम के पैदा होने की प्रतीक्षा है.
बहुत खूब ||
जवाब देंहटाएंरावण ही यदि रावण को मारे तो ये कहाँ का न्याय है……………एक बहुत ही विचारणीय प्रश्न उठाया है……………आज तो हर नुक्कड पर एक नही अनेक रावण घूम रहे हैं बस राम ही नही मिलता आज्।
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा रचना।
aaj ke sandarbh me bahut hi shasakt rachna!
जवाब देंहटाएंसही फरमाया है आपने!...रावण बुराई है तो राम अच्छाई है!.... अच्छाई का ही हक बनता है कि बुराई को जला दे! एक बुरा दुसरे बुरे को कैसे सजा दे सकता है?.... मार्मिक रचना...बधाई!
जवाब देंहटाएंरचना जी,,, नमस्कार...
जवाब देंहटाएंमैं आपकी रचनाशीलता पर नतमस्तक हूँ....मनेक़ुईन हो या आज ये दशानन रावण...कितना सशक्त एवं सुन्दर लेखन...कितनी गहरी सोच...वाह...ईश्वर आपको नित नयी उंचाईयां प्रदान करे और आपके सभी स्वप्नों को साकार करे...
दीपक
आपकी कविता भावपूर्ण और सुन्दर लगी.
जवाब देंहटाएंराम हमारे बीच से चले गये हैं, इस कारण ही हर साल हम रावण जलातें है..
हाँ, गुरु पूर्णिमा पर हमारी पोस्ट पर आपके कमैंट के सन्दर्भ में पंतनगर को याद करना बहुत अच्छा लगा.
सचमुच पंतनगर जो भी गया है, उम्र भर की यादें लेकर ही लौटा है. आप वहाँ पढ़े हों या पढ़ाया हो..पीले अमलतास और सुर्ख गुलमोहर का लम्बी कतारों ने बिना किसी भेद-भाव के सबका स्वागत प्रेम से ही किया है. लम्बी कतारों में, सीधे खड़े अशोक के वृक्षों ने बिना झुके अपनी ही तरह की सलामी दी है....हरे रंग के जितने शेडस मैने वँहा देखे.. इन कंक्रीट के जंगलों में फिर नहीं मिले.....
गांधी हाल के फिल्म शो हों, दीपक रेस्त्रा की धमा-चौकडी, बड़ी मार्केट की शाम हो, "ढाई नम्बर" होस्टल (सरोजनी भवन, जिसे यह नाम हम पाँच नम्बर होस्टल यानि चितरंजन भवन वालों ने दिया था, हा.हा.हा ) से नगला तक बिना बात देर तक टहलना....अपने बाबा सह्गल को छोड़कर..अली हैदर के शब्दो मे कहें तो.....यादें! बस यादें रह जाती हैं...
आभार!
Ek chintansheel prastuti..
जवाब देंहटाएंsach mein apna apraadh sweekar kar lene mein hi to badpan hota hai....
Saarthak parstuti ke liye dhanyavaad
ये प्रण लेता हूँ
जवाब देंहटाएंअब न मरुँगा,
अब न जलूँगा
जाओ ढूंढ़ लाओ,
मात्र एक राम मेरे लिए
तब तक मैं यहीं प्रतीक्षारत हूँ
मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
अपराधी हूँ ,
पर सिर्फ राम का.
adbhut ,magar isi vishya par bahut pahale main bhi likhi thi aur ise dekh apni rachna turant yaad aa gayi ,kahan dabi hogi pata nahi magar dekhne ki ichchha jaag uthi .sach kaha aaj hajar mukh wala rawan hai wo bhi bina usulo ka ,soni ji sahi kahe ,dekh tere insaan ki haalat kya ho gayi bhagvaan ,hum to filhaal itna hi kahenge ya kah sakte hai .badhiya .
आपकी आज की कविता बहुत अच्छी लगी. इसे पढ़ कर एक बात याद आई..
जवाब देंहटाएंजहाँ भगवान कहते हैं....
घर घर में है रावण रहता...इतने राम कहाँ से लाऊँ?
आपकी कविता भावपूर्ण और सुन्दर लगी.
जवाब देंहटाएंaapki ye dard bhari kavita
जवाब देंहटाएंsab kuchh byan kar rahi hai...
bahut hi shandaar prastuti......
waise aapke blog pe har post, ek se badh kar ek hai, aur follow karne ko majboor karti hai.......aage se barabar aaunga.......:)
rachana,
जवाब देंहटाएंjust jabardasht rachna .. bahut kuch sochne par mazboor karti hui aur aaj ke samaaj ki sacchi tasweer ko pesh karte hue .. dil se badhayi ji
"रावण को सजा देने का हक़ सिर्फ राम को है"
जवाब देंहटाएंआपकी सोच और रचनाधर्मिता को नमन करने के अलावा अब और कोई बात जहन में नहीं आती - आभार
बहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंरचना माँ,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
आज तो मुझे भी समझ आ गयी! और सच कहूं तो थोडा सा परेशां भी कर गयी आपकी रचना!
पर आप तो मेरा नेचर जानती हैं, ज्यादा देर तक गंभीर रहने से मेरी तबियत खराब हो जाती है!
कम-से-कम आपके मोहल्ले के रावण का वध तो मैं कर दूंगा.....राम ना सही, कृष्ण सही! (कृष्ण को भी अलाऊड है ना!!!???)
हम सब तय कर ले रावण को , रावण के हाथो मरने नहीं देगे |
जवाब देंहटाएंसार्थक कविता आज के युग का प्रतिनिधित्व करती हुई |
प्रण लेता हूँ
जवाब देंहटाएंअब न मरुँगा,
अब न जलूँगा
जाओ ढूंढ़ लाओ,
मात्र एक राम मेरे लिए
रावण जानता है कि सब यहां उसके अनुचर हैं। राम ने लंका जीती थी। अब कलयुग में रावण ने पूरा भारत जीतकर बदला ले रखा है। उसे पता है कि राम तो मिलने वाले नहीं, नगरी उसकी है, इसलिए वो सुरक्षित है....।
आपकी कविताओं में सन्दर्भ और कथ्य मिल कर गहरा प्रभाव उत्पन्न करते हैं. बहुत ही बढ़िया.
जवाब देंहटाएंमात्र एक राम मेरे लिए!!!
जवाब देंहटाएंआज के युग का सबसे बड़ा सवाल ???राम अगर मिल भी गये तो रावण से पहले ऐसे मार डाले जायेंगे जैसे गंगा मारी जा रही हैं !मेरी शुभ कामनाये सदा ही आपके साथ हैं !
बहुत सुन्दर और विचारणीय रचना प्रस्तुत किया ही आपने !
जवाब देंहटाएंमित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
मार्मिक रचना.बधाई!!!
जवाब देंहटाएंbahot sunder.
जवाब देंहटाएंbehad hi prabhavi post .sach rawan ne to kewal maa seeta ka apharan kiya tha par aaj to ye aam baat ho gai hai.aap kitne rawano ko dhudh paoge.
जवाब देंहटाएंpoonam
इस अनूठी रचना के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
तुम अपने भीतर के रावण का गला घोंट दो
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते सव राममय हो जाएगा.
..आपकी पोस्ट पढ़कर अलकबीर का यह शेर याद आ गया.
मै अपराधी हूँ पर सिर्फ राम का । ढूँढ लाइये एक राम मेरे लिये ।
जवाब देंहटाएंरावण के बहाने आज की स्थितियों को उजागर करती कविता बहुत सटीक और सामयिक भी ।
टेढ़ी शर्त है. राम तो मिलना असंभव है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
bahut hi badiya likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंPls Visit My Blog and Share ur Comments....
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भावपूर्ण और सुन्दर कविता ।
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लाग पर आये और अपने विचार व्यक्त किये । आप का बहुत-बहुत धन्यवाद ।
मार्मिक रचना !
जवाब देंहटाएंAapki is post pe baad me comment karti hun...chain se padhke...waise ekbaar padhi hai,par hai itni prabhavi ki,kayi baar padhne ka dil karta hai.
जवाब देंहटाएंRahi baat mere dharawahik,'Bikhare Sitare" kee ...to aaapko sahi lagta hai,mano pahle padha hua ho.Mai ise chand pathkon ke aagrah pe punah prakashit kar rahi hun...bas chand kishten bachee hain!
Aapke comments itni sanjeedgee se diye hote hai,ki,man khush ho jata hai.
बहुत ही प्रभावी रचना .. रावण के संवाद में बहुत कुछ कह रही है रचना ...
जवाब देंहटाएंहम जाने कब से दशहरा में शामिल नहीं हुए...
जवाब देंहटाएंया तो नेता, या भूमाफिया..और या..छुटभैये नेता ( सीधा बोले तो गुंडे..)..इन्हीं को देखा था रावन पर इलेक्ट्रोनिक तीर चलाते हुए...
तब से ना तो राम से नफरत हुई/ना रावन से प्रेम हुआ...
हाँ दुनिया देख ली....