उस त्यौहार में
पाप धोने के
उस प्रयास में
इंसान ही नहीं
जानवरों ने भी दी दुआएं
वो रुपहली प्लेटे,
प्लास्टिक की
डिज़ाइनर कटोरियाँ,
जरूर जानती हैं
कोई वशीकरण मंत्र
खींचती हैं सबको अपनी ओर
कुत्तों ने सूंघा, चाटा, खाया
कुछ ने ढूंढी हड्डियां.
इतना सब कुछ
सब तरफ देख
होश खो बैंठीं गाय
बतियाती हुईं आयीं
लो हो गई आज की
किटी पार्टी पूरी
फिर क्या था
क्या प्लेट
क्या कटोरी
वाह...वो रंग बिरंगे
पालीथीन
लाल, हरे, नीले, पीले, बैंगनी
मिनटों में चट
मानों सफाई कर्मचारियों का दल था
नहीं जानती
कहाँ सहेजेंगे ये लोग
इतनी दुआओं को.
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : पाओलो कोएलो को पढ़ते हुए
मूक पशुओं के प्रति संवेदनहीनता और कृत्रिम आधुनिकता पर व्यंग्य, दोनों की झलक है आपकी इस रचना में ।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 25 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यबाद यशोदा जी मेरी रचना को "पांच लिंकों के आनंद में" शामिल करने के लिए.
हटाएंउत्सव के नाम पर ढेर सारी गंदगी और बेवजह का खर्च..मानव की समझ को क्या कहें..
जवाब देंहटाएंकरार व्यंग है ... आज इन उत्सवों के नाम पर प्लास्टिक का प्रयोग मूक प्राणियों के लिए जानलेवा बना हुआ है ... अलग से विषय को बाखूबी रचना के माध्यम से आप उठाती रहती हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी।
जवाब देंहटाएंमार्मिक भाव
जवाब देंहटाएंbehad khubsoorat kavita.. :)
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने, मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंआज मानव की सुविधाएँ किस तरह प्रकृति और दूसरों के जीवन से खेल रही हैं...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा ब्लॉग है आपका
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता और दुआएं !!
प्रेरक प्रस्तुति
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