रविवार, 23 अगस्त 2015

दुआएं

दुआएं
कल के 
उस त्यौहार में 
पाप धोने के 
उस प्रयास में 
इंसान ही नहीं 
जानवरों ने भी दी दुआएं
वो रुपहली प्लेटे,
प्लास्टिक की 
डिज़ाइनर कटोरियाँ,
जरूर जानती हैं 
कोई वशीकरण मंत्र
खींचती हैं सबको अपनी ओर 
कुत्तों ने सूंघा, चाटा, खाया 
कुछ ने ढूंढी हड्डियां. 
इतना सब कुछ 
सब तरफ देख
होश खो बैंठीं गाय
बतियाती हुईं आयीं
लो हो गई आज की
किटी पार्टी पूरी
फिर क्या था 
क्या प्लेट
क्या कटोरी 
वाह...वो रंग बिरंगे
पालीथीन   
लाल, हरे, नीले, पीले, बैंगनी 
मिनटों में चट
मानों सफाई कर्मचारियों का दल था 
नहीं जानती 
कहाँ सहेजेंगे ये लोग 
इतनी दुआओं को.

16 टिप्‍पणियां:

  1. मूक पशुओं के प्रति संवेदनहीनता और कृत्रिम आधुनिकता पर व्यंग्य, दोनों की झलक है आपकी इस रचना में ।
    शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 25 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यबाद यशोदा जी मेरी रचना को "पांच लिंकों के आनंद में" शामिल करने के लिए.

      हटाएं
  3. उत्सव के नाम पर ढेर सारी गंदगी और बेवजह का खर्च..मानव की समझ को क्या कहें..

    जवाब देंहटाएं
  4. करार व्यंग है ... आज इन उत्सवों के नाम पर प्लास्टिक का प्रयोग मूक प्राणियों के लिए जानलेवा बना हुआ है ... अलग से विषय को बाखूबी रचना के माध्यम से आप उठाती रहती हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छा लिखा है आपने, मार्मिक रचना.

    जवाब देंहटाएं
  6. आज मानव की सुविधाएँ किस तरह प्रकृति और दूसरों के जीवन से खेल रही हैं...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत प्यारा ब्लॉग है आपका
    सुन्दर कविता और दुआएं !!

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रेरक प्रस्तुति

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