सरगोशी
बारिश में भीगी
गीली सीली
सराबोर धूप ने
कल मेरी
सांकल बजाई.
राहत की साँस ली,
चलो कहीं कोई तो है.
हताश थी,
कितना हठी,
और बेपरवाह
है सूरज.
जब भी आता है,
धूप के बिना
नहीं आता.
सूरज और धूप
ज्यों धूप और साया
हो गये.
आ जाओ,
कभी बदली का
आंचल भी थाम लो
कभी उसके पीछे भी
छुप जाओ
कभी तो छोड़ दो
धूप को अकेला
मैं इतना सिर्फ
इसलिए कह रही हूँ
सबको तपिश देने वाले
कभी तो जानो
किसी के न होने का अर्थ.
कई बार तो होने का अर्थ भी न होने पर ही समझ आता है।
जवाब देंहटाएंगीली सीली धूप का आगमन मुबारक हो..सूरज तो हर हाल में एक सा है..बादलों को मनाइए
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 04 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यबाद यशोदा जी.
हटाएंसुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंसबको तपिश देने वाले
जवाब देंहटाएंकभी तो जानो
किसी के न होने का अर्थ
...बहुत सुन्दर
बिलकुल सही । बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंkisi ke n hone ka dard...n hone pe hi pata chalta hai..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति, कितना दर्द देता है किसी के न होने का अहसास.
जवाब देंहटाएंsahi bat ..bhawnaon ki sundar abhiwayakti .....kavita jee ...
जवाब देंहटाएंआपके भाव के क्या कहनें , लाजवाब प्रस्तुति रही
जवाब देंहटाएंnamaskar , mujhe ye kavita bahut pasand aayi ji ,
जवाब देंहटाएंthanks