मन की बात
मन की बात जबसे मन की न रही,
इनकी उनकी जन जन की हो गई.
पूरे शहर में चर्चा ये पुरजोर है
बात भी अब बदचलन हो गई.
मुद्रा का उठना, उठ-उठ के गिरना,
समस्या देश के उत्प्लवन की हो गई,
जो मुह खोले उसकी हत्या, आत्महत्या,
बात इंसानियत के हनन की हो गयी.
अपराध जगत और उसके किस्से
सुन सुन के इच्छा वमन की हो गई
नसों में रक्त नहीं, दौड़ती चाटुकारिता
कहते हैं बात महिमामंडन की हो गई.
भ्रूण हत्या, शीलहरण फिर चरित्र हनन
कैसी पराकाष्ठा भ्रष्टाचरण की हो गई.
बिकता है माँ का दूध भी बाज़ारों में अब,
देखो नीलामी माँ के स्तन की हो गई.
इस तरह मुख म्लान हुआ देश समाज का
घड़ी मनन, चिंतन, स्तवन की हो गई.
मन की बात जब से मन की न रही,
इनकी उनकी जन जन की हो गई.
पूरे शहर में चर्चा ये पुरजोर है
मन की बात भी अब बदचलन हो गई.
मौजूदा सामाजिक-राजनैतिक हालात को दर्शाती बहुत सुंदर, सटीक और भावपूर्ण रचना ....
जवाब देंहटाएंबात भी अब बदचलन हो गई
जवाब देंहटाएंवर्तमान स्थिति का बहुत ही सुन्दर तरीके से विवेचन करती रचना ...
जवाब देंहटाएंSateek Bhav....
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंRachanaji Windows-10 अभी तक Reserve की या नहीं। Windows-10 आनी शुरू हो गयी है।
जवाब देंहटाएंधन्यबाद सम्पत जी.अभी रिजरवेसन करवाती हूँ
हटाएंसटीक और सार्थक रचना । आजके समाज का आइना।
जवाब देंहटाएंmn ki baaton ko mn jane kaise - kaise le leta hai .... or jamane me hawa phail jati hai
जवाब देंहटाएंbht hi achha likha aapne
मन की बात के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया इस रचना ने ... सटीक, लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंहर एक पंक्ती दिल को छु गई ....बहुत ही सुन्दर लिखा है जज्बातों को
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