आशा
जाने कितनी रातों को
छुप छुप कर, हम भी रोये हैं
जीवन में हमने भी अपने
बबूल से दिन ढोए हैं
फूलों का कभी साथ न पाया
काँटों में जखम पिरोये हैं
जाने कैसे कितने घाव
इन्हीं आँखों से धोए हैं
टूटे हुए मरहम के धागे भी
आज तक संजोए हैं
वयोवृद्ध अहसास हमारे
अब तक ताके पर सोये हैं
सूखे हुए आशा के बीज
अब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
फूलों का कभी साथ न पाया
जवाब देंहटाएंकाँटों में जखम पिरोये हैं
कभी कभी काँटों में भी फूल खलते हैं ।
सूखे हुए आशा के बीज
अब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
कुछ बीज सूखे होकर भी अंकुरित हो जाते हैं ।
यही आशा है ।
सुन्दर रचना ।
त्रुटि सुधार --कभी कभी काँटों में भी फूल खिलते हैं ।
जवाब देंहटाएंcongrates on wonderful peom..
जवाब देंहटाएंसूखे हुए आशा के बीज
जवाब देंहटाएंअब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
Kitna sundar likhtee hain aap!Baar,baar padhneka man hota hai...!
सूखे हुए आशा के बीज
जवाब देंहटाएंअब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
बहुत सुन्दर. यही विश्वास तो नया जीवन देता है इन्सान को.
bahut hi achhi rachna.....
जवाब देंहटाएंजाने कितनी रातों को
छुप छुप कर, हम भी रोये हैं
waaah bahut sundar..kayi khubsurat panktiyaan...
जाने कैसे कितने घाव
इन्हीं आँखों से धोए हैं
gr8...
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ...
धरा पर तो जगह नहीं है
जवाब देंहटाएंअंबर में सपने बोये हैं
बहुत सुंदर पंक्तियां है...भाव बहुत अच्छे हैं
वयोवृद्ध अहसास हमारे
जवाब देंहटाएंअब तक ताके पर सोये हैं
बहुत भाव पूर्ण ..
अंबर में सपने बोये हैं
सच है सपनों के लिए तो बिलकुल भी जगह नहीं है ...बहुत सुन्दर रचना ..
सूखे हुए आशा के बीज
जवाब देंहटाएंअब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
आशा का दामन थामें रखना चाहिए .... सपने जीवित रहने चाहिएं ..... सूखे बीज भी पल्लवित हो जाएँगे ...
बहुत अच्छी रचना लगी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
अनूठी कविता...........
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता ..........
उत्तम पोस्ट !
जाने कविता का दर्द है या मेरे अंदर का सूनापन पलकों की कोर गीली हो गई आपकी कविता पढ कर... बेहद पसंद आई...
जवाब देंहटाएंकौन सा शब्द लिखूं या छोड़ दू...जिसके लिए ये लिखूं की ये बहुत बढ़िया लगा...क्युकी मुझे सारी रचना ही बहुत बढ़िया लगी. और दिल से निकली तो हर बात ही दिल तक पहुँचती है.
जवाब देंहटाएंसो बहुत बहुत सुंदर 'रचना' बधाई.:)
पलकों से सपने लेने आयी,
जवाब देंहटाएंउजालों में गुरूर से लूटने आयी,
खो गयी रौशनी सितारों की,
तेज़ धूप हमें होश में लाई...
बहुत कमाल की रचना है
दिल मे उतर गयी
शुभकामनायें
बहुत ख़ूब… प्रेरणादायक... आकाश सपने बोने का अनुभव... सोचकर रोमांच होता है... अब जाकर यकीं हुआ कि
जवाब देंहटाएंकैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर ज़रा तबीयत से उछालो यारो!
Good One! sach mein aashayein hi zindgi ban jaati hai...aur han wo vyovradh waali baat yaani tazurba uske bina bhi muskile hahin
जवाब देंहटाएंस्वप्न ही तो आशा का संचार करती हैं. स्वप्न दिखते रहें, आशा जीवित रहे...यूँ ही प्रेरक सृजन चलता रहे।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविह्रदय की अभिव्यक्ति है आपकी रचना.
जवाब देंहटाएंनभ के सपने,
जवाब देंहटाएंकब थे अपने,
पंख खो दिये,
अब तो खग ने।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंRachna ji
जवाब देंहटाएंbahoot sunder abhivayakti
"सूखे हुए आशा के बीज
जवाब देंहटाएंअब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं"
रचना जी आपकी हर कविता कुछ नया कहती है.. इसी कविता को देखिये... आप अम्बर मे बीज बोने की बात कर रही है.. कितनी उम्दा बात है यह... एक नया बिम्ब है यह... हौसले की... आशावादी ... सुन्दर कविता... प्रेम और आशा मे डूबी हुई... अब तो रविवार को आपकी कविता का इन्त्जार रहने लगा है...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसमझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
आशा ही तो हमें जिंदा रखे हुए है, रचनाजी!....हम इस आशा में रात गुजारते है कि कल सुबह होगी!...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!....धन्यवाद रचनाजी! आपकी शुभकामनाएं ही मेरा संबल है!
जवाब देंहटाएं...रचनाजी, हम सब साथ साथ है!....मेरे उपन्यास पर अगर फिल्म बनती भी है, तो भी मै यही हूं और यही रहूंगी!...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut sunder abhivykti.......navsanchar karatee..........
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंफूलों का कभी साथ न पाया
जवाब देंहटाएंकाँटों में जखम पिरोये हैं
Sunder Shabd
बहुत सुंदर भाव |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
वयोवृद्ध अहसास हमारे
जवाब देंहटाएंअब तक ताके पर सोये हैं
सूखे हुए आशा के बीज
अब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
bahut hi khoobsurat ,ek kami ko poora karne ke liye jis tarah aapne rasta dhoondha ,jawab nahi .
अतीत को याद करने अथवा
जवाब देंहटाएंउसमें खोने का जीवन्त प्रयास ।
अति सुन्दर....अभिव्यक्ति ।
सद्भावी -डंडा लखनवी
आसमान पर सपने बोने की आशा फलती फूलती रहे ...!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाव्यक्ति लिखते रहिये ...
जवाब देंहटाएंखे हुए आशा के बीज
जवाब देंहटाएंअब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं ।
बहुत ही सुन्दर शब्द, भावमय प्रस्तुति ।
फूलों का कभी साथ न पाया
जवाब देंहटाएंकाँटों में जखम पिरोये हैं
जाने कैसे कितने घाव
इन्हीं आँखों से धोए हैं...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! इस ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना के लिए बधाई!
सूखे हुए आशा के बीज
जवाब देंहटाएंअब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये ...
बहुत ही भावो में डूबी सुन्दर पोस्ट ...
अब तक ताके पर सोये हैं
जवाब देंहटाएंसूखे हुए आशा के बीज
अब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां----सहज ढंग से आपने आशावादी विचारों को प्रस्तुत किया है।
बेहतरीन आशावादी रचना---।
जवाब देंहटाएंजाने कैसे कितने घाव
जवाब देंहटाएंइन्हीं आँखों से धोए हैं
दर्द को भी अब दर्द होने लगा है !दर्द खुद ही घाव धोने लगा है !
बेहद मर्मस्पर्शी कविता है ! हृदय के दंश की अभिव्यक्ति है ! बधाई
बहुत सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंसूखे हुए आशा के बीज
जवाब देंहटाएंअब अरमानों में भिगोए हैं
धरा पर तो जगह नहीं है
अंबर में सपने बोये हैं
...himmate-marda-madad-e khuda...
धरा पर तो जगह नहीं है
जवाब देंहटाएंअंबर में सपने बोये हैं
rachna ki khoobsurat rachna ke liye dhero bandhaii ....awaysome