दशानन
मैं रावण
अधम पापी नीच
सीता हरण का अक्षम्य अपराधी
सब स्वीकार है मुझे.
मैं प्रतिशोध की आग में जला था,
माना कि मार्ग गलत चुना था.
किया सबने भ्रमित मुझे
मार्ग दर्शन किया नहीं किसी ने.
मैं वशीभूत हुआ माया जाल के.
मैंने भी फिर किया
विस्तार माया जाल का.
देख सीता मुग्ध हुआ मैं.
ये दोष तो मेरा नहीं था
फिर भी मैं मानता हूँ
मैंने हरा सीता को तो क्या?
मैंने किया छल कपट तो क्या?
मैंने दिया सीता को प्रलोभन तो क्या?
पटरानी बनाने का मन बनाया तो क्या?
पूरी लंका को विधवा बनाया तो क्या?
नहीं किया स्पर्श
सीता को उसकी अनुमति के बिना.
वो पवित्र थी जैसी रही वो वैसी.
मरे दस सर तो दीखते हैं.
हाँ! मैं हर जन्म में
रावण ही बनना चाहूंगा,
आज का मानव नहीं.
आज का मानव् हर साल बुराई के नाम से रावन जलाते हैं और रावण की सब बुराइयों को आत्मसात कर लेते हैं |आज का मानव बुराइयों की पराकाष्ठा है |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही "रावण" आज के "महारावणों" जैसा कतई नहीं बनना चाहेगा - बहुत खूब
जवाब देंहटाएंकितना नीचे गिर गया है मानव कि रावण तक खुद को उससे अच्छा मानने लगा है..
जवाब देंहटाएंसामयिक पुट लिए गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदशानन को भी नाज है खुद पे
जवाब देंहटाएंसच आज के मानव से लाख गुना अच्छा था रावण ...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने
बहुत सटीक रचना...आज मानव का इतना पतन होता जा रहा है कि सच में रावण को भी शर्म आती होगी...
जवाब देंहटाएंरावण के चरित्र का एक सामयिक और प्रेरक पहलू इस कविता में बख़ूबी चित्रित है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंरावण को सही तो नहीं ठहराया जा सकता। उसका ना छूने के पीछे भी एक राज़ था। लेकिन आजकल इंसान भी रावण से कम नहीं।
जवाब देंहटाएंहम सब के भीतर एक रावण बैठा है। अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंBahut khoobsurati se kahi ye baat aapne
जवाब देंहटाएंOn Diwali and in the coming year... May you & your family be blessed with success, prosperity & happiness!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंवाह .. सच है आज का मानव बहुत आगे निकल गया है ...
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