रविवार, 25 अक्तूबर 2015

दशानन

दशानन

मैं रावण
अधम पापी नीच
सीता हरण का अक्षम्य अपराधी
सब स्वीकार है मुझे.
मैं प्रतिशोध की आग में जला  था,
माना कि मार्ग गलत चुना था.
किया सबने भ्रमित मुझे 
मार्ग दर्शन किया नहीं किसी ने.
मैं वशीभूत हुआ माया जाल के.
मैंने भी फिर किया
विस्तार माया जाल का. 
देख सीता मुग्ध हुआ मैं.
ये दोष तो मेरा नहीं था
फिर भी मैं मानता हूँ
मैंने हरा सीता को तो क्या?
मैंने किया छल कपट तो क्या?
मैंने दिया सीता को प्रलोभन तो क्या?
पटरानी बनाने का मन बनाया तो क्या?
पूरी लंका को विधवा बनाया तो क्या?
नहीं किया स्पर्श
सीता को उसकी अनुमति के बिना.
वो पवित्र थी जैसी रही वो वैसी. 
मरे दस सर तो दीखते हैं.
हाँ! मैं हर जन्म में 
रावण ही बनना चाहूंगा,
आज का मानव नहीं.

17 टिप्‍पणियां:

  1. आज का मानव् हर साल बुराई के नाम से रावन जलाते हैं और रावण की सब बुराइयों को आत्मसात कर लेते हैं |आज का मानव बुराइयों की पराकाष्ठा है |

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. निश्चित ही "रावण" आज के "महारावणों" जैसा कतई नहीं बनना चाहेगा - बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. कितना नीचे गिर गया है मानव कि रावण तक खुद को उससे अच्छा मानने लगा है..

    जवाब देंहटाएं
  6. सच आज के मानव से लाख गुना अच्छा था रावण ...
    बहुत सही कहा आपने

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सटीक रचना...आज मानव का इतना पतन होता जा रहा है कि सच में रावण को भी शर्म आती होगी...

    जवाब देंहटाएं
  8. रावण के चरित्र का एक सामयिक और प्रेरक पहलू इस कविता में बख़ूबी चित्रित है।

    जवाब देंहटाएं
  9. रावण को सही तो नहीं ठहराया जा सकता। उसका ना छूने के पीछे भी एक राज़ था। लेकिन आजकल इंसान भी रावण से कम नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  10. हम सब के भीतर एक रावण बैठा है। अच्छी कविता

    जवाब देंहटाएं
  11. On Diwali and in the coming year... May you & your family be blessed with success, prosperity & happiness!

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बढ़िया , मंगलकामनाएं आपको !

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह .. सच है आज का मानव बहुत आगे निकल गया है ...

    जवाब देंहटाएं

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...