एक रामलीला यह भी
यूं तो होता है
रामलीला का मंचन
वर्ष में एक बार
पर मेरे शरीर के
अंग अंग करते हैं
राम, लक्ष्मण,
सीता और हनुमान
के पात्र जीवन्त.
देह की सक्रियता
सतर्कता, तत्परता
और चैतन्यता के
लक्ष्मण की उपस्थिति
के बाद भी
मष्तिष्क का रावण
देता रहता है प्रलोभन
भांति भांति के जब तब
दिग्भ्रमित हुआ है
मन जब जहाँ
अपह्रत हुई है
ह्रदय की सीता तब तहां
आत्मा का राम
करता है करुण कृन्दन
अंतर्ज्ञान का हनुमान
करता है प्रयास
पुनर्मिलन का
आत्मा और ह्रदय का
राम और सीता की तरह
एक उम्र गुजर जाती है
अपने ही ह्रदय को
अपनी ही आत्मा से
मिलने में
एक सार करने में.
bahut achchhi kavita... very true and beautiful !
जवाब देंहटाएंरचना जी, बिलकुल सही है, आत्मा का मिलान करने में उम्र निकल जाती है। बढ़िया प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंरचना जी, बिलकुल सही है, आत्मा का मिलान करने में उम्र निकल जाती है। बढ़िया प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 20 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिग्विजय जी.
हटाएंवाह..और इस तरह रामायण पल पल घटती है..बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंअंतर्मन की रामलीला - बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंअंतर्मन की रामलीला कभी ख़त्म नहीं होती ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
सुन्दर और भावपूर्ण। दुर्गा पूजा और दशहरे की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंशुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंवाह , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएं