महात्मा
देखती आई हूँ बरसों से
अपनी ही प्रतिमा में कैद
महात्मा को धूप धूल
चिड़ियों के घोसले
और बीट से सराबोर,
मायूस
हर सितम्बर माहांत में
चमकते है,
मुस्कुराते हैं,
दो अक्टूबर को बाहर भी आते हैं.
हम सब के बीच
हमारे मन मष्तिष्क में
विचरते हैं
पर इस बार
कुछ भी नहीं हुआ ऐसा
अंग्रेजों से अहिंसा के
सहारे जीतने वाले
महात्मा
नहीं आए बाहर
कहीं जबरदस्ती हो ना जाये
उनका या उनकी पुरानी पीढ़ियों का
धर्म परिवर्तन
उनका अहिंसा का सिद्धांत
ही न बन जाए
हिंसा का कारण
एक बार फिर
बाहर ना आकर
किया है सत्यापित
अपने अहिंसा के सिद्धांत को
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 05 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी मेरी रचना को "पांच लिंकों के आनंद में" शामिल करने हेतु धन्यवाद.
हटाएंगाँधी आश्रम का नाम बदल कर खादी भारत कर दिया गया है ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-10-2015) को "ममता के बदलते अर्थ" (चर्चा अंक-2119) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी धन्यवाद.
हटाएंहर सितम्बर माहांत में
जवाब देंहटाएंचमकते हैं
मुस्कुराते हैं
२ अक्टूबर को बाहर भी आते हैं
हम सब के बीच ...
..सच कहा आपने ...मैंने भी एक पार्क में गांधी जी की मूर्ति को तेल चुपड़ते देखा ..चमकदार बनाये जा रहे थे २ अक्टूबर के लिए ...हालांकि फोटो अच्छी लगी तो ब्लॉग पर पोस्ट की है ....
...बहुत सार्थक सामयिक चिंतन प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
प्रित्रिपक्ष की भांति यह भी एक रस्म अदा की जाती है मज़बूरी में |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और समसामयिक.
जवाब देंहटाएंउनकी अहिंसा का कारण ही न बन जाए हिंसा का कारण... सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबापू तो सदा ही ध्रुव तारे की मानिंद जगमगाते रहेंगे, किसी को राह पानी हो तो देख ले उसकी ओर..
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक...गांधी के असल आदर्शों को भुलाकर उनके नाम पर राजनीति और उनकी जयंती पर अक्सर रस्म अदायगी ही होती है.
जवाब देंहटाएंआज गांधी जी का नाम और उनके सिद्धांत केवल उसी समय याद आते हैं जब जनता को उनके नाम के सहारे भ्रमित करना हो...एक उत्कृष्ट और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंमहत्मा के विचार अब सिद्धांतो में कैद हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .
जवाब देंहटाएंसटीक और वास्तविक चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ----
बहुत ही सार्थक रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसच ही है। अब तो बापू लोगों को केवल नोटों पर छपे हुए ही अच्छे लगते है बस।
जवाब देंहटाएंसच ही है। अब तो बापू लोगों को केवल नोटों पर छपे हुए ही अच्छे लगते है बस।
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक रचना ।
जवाब देंहटाएं.....बहुत ही संजीदा लेखन :))
जवाब देंहटाएंRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर मांझी: द माउंटेन मैन :)
आज के दौर को देख कर सच में उनको भी शर्म आ जाएगी ...
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