कुछ सपने मेरे
आज एक अजीब सी
उलझन, कौतुहल,
बेचैनी, उद्विग्नता है.
भारी है मन
और उसके पाँव.
कोख हरी हुई है
मन की अभी अभी.
गर्भ धारण हुआ है अभी अभी
कुछ नन्ही कोपले फूटेंगी,
एक बार फिर
डरती हूँ,
ना हो जाये
जोर जबर्दस्ती से
गर्भपात
एक बार फिर.
ना तैयार हो
दूध भरा कटोरा,
जबरदस्ती डुबोने को,
यह सच है
मेरी मन की कोख में
जन्म लेने को आतुर हैं.
फिर कुछ सपने मेरे
नहीं समझ पाई अब तक,
क्यों असमय ही
तोड़े जाते हैं
मौत की नींद सुलाए जाते हैं
जबरन मुझसे छीने जाते हैं
कुछ सपने मेरे,
क्या सपनों का भी
कोई लिंग होता है
पुल्लिंग या......
धन्यवाद यशोदा जी.
जवाब देंहटाएंसपने टूटते हैं क्योंकि सपनों का अर्थ ही यही है असली तो वह जागरण है जो किसी स्वप्न के टूटने के बाद प्राप्त होता है..
जवाब देंहटाएंसादर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-10-2015) को "प्रातः भ्रमण और फेसबुक स्टेटस" (चर्चा अंक-2127) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी.
हटाएंइस 'या' में कितना कुछ है ..
जवाब देंहटाएंबेजोड़ लेखनी
जवाब देंहटाएंसपने कब अपने होते हैं...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंरचना जी, सही कहा आपने... सपनों का कोई लिंग नही होता...
जवाब देंहटाएंprabhaavshaali
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली रचना । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .. अतीत के पन्ने पलट कर रख दिए हैं ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
बहुत ख़ूब
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