रविवार, 5 मई 2013

शमा

शमा


कहते हैं उसे
दर्द नहीं होता
वो किसी के प्यार में
पागल नहीं होता
पलक पांवड़े नहीं बिछाता
गिरता नहीं बिखरता नहीं
बूंद बूंद रिसता नहीं
बहता नहीं टूटता नहीं
कल एक मोमबत्ती को
दिए के प्यार में
जलते सुलगते
बिखरते टूटते
सीमाओं को तोड़ते देखा
और दिया
एक जलन तपिश
आग रौशनी थी उधर
फिर भी
अपनी ही सीमाओं में
बंधा शांत
एक ठहराव
एक अकेलापन
अचानक देखती हूँ
लौ के एक भाग का
टूटना गिरना स्याह होना
अँधेरे में खो जाना
क्या इसी को कहते
दीप तले अँधेरा.

32 टिप्‍पणियां:

  1. सबके अपने अँधेरे होते हैं..जीवन फिर भी जलता है।

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  2. बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,रचना जी,,,

    RECENT POST: दीदार होता है,

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  3. दीए को देखना भी अद्भुत है...अँधेरा और उजाला दोनों साथ लेकर चलती है|

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  4. आप बहुत गहराई तक पहुँच जाती हैं।
    बढ़िया।

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  5. सुन्दर रचना .... रचना जी !:)
    मोमबत्ती भी तो जलते-जलते ....ख़ामोशी से पिघलती चली जाती है ... और दिया ..बुझने के पहले एक बार उचक कर अपने ख़त्म होने का एलान ज़रूर करता है .....~ दोनों ही अपने पीछे अपनी निशानी छोड़ जाते हैं ......
    ~सादर!!!

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  6. ये भी अपना एक अंदाज़ होता है ......

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  7. ताउम्र कर्म भट्टी में जलना है फिर बुझ जाना है उड़ जाना है .प्रेम विह्वल मन की गति मोमबत्ती दीपक का रूपक और आदमी का मन एक जैसे हैं .खुद जलना या फिर दूसरे को जलाना .

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  8. अपनी समझ अपनी किस्मत ..
    शुभकामनायें !

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  9. गहरी सोच उससे भी गहरा सवाल
    मेरे समझ से ब़ाहर

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  10. दोनों ही जलते हैं ....सुंदर प्रस्तुति

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  11. अचानक देखती हूँ
    लौ के एक भाग का
    टूटना गिरना स्याह होना
    अँधेरे में खो जाना
    क्या इसी को कहते
    दीप तले अँधेरा.-------

    मन के गहन भाव को व्यक्त करती रचना
    बधाई


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  12. अन्धेरा का सूक्ष्म अन्वेषण..

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  13. दीप तो हमेशा नव नव सीख देता है ।उम्दा रचना ।

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  14. अँधेरा तो जलते दीपक के तले होता है ...
    लौ के स्याह हो जाने के बाद तो सम्पूर्ण अँधेरा ही अन्धेरा होगा न ....

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  15. उजाला और अंधेरा तो सभी के साथ रहता है ... कौन कब आगे आ जाता है पता नहीं चलता ... वैसे भी बुझ जाने के बाद तो सभी जगह अंधेरा ही होता है ...

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  16. निराली सोच और निराला अंदाज

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  17. शमा और दिये की सूक्ष्म तुलना .... सुंदर प्रस्तुति ...

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  18. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आपका आभार.

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  19. बहुत ही संवेदनशील कविता..

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  20. बहुत ही सूक्ष्म अन्वेषण रचना जी..............

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  21. वाह पुनः निशब्द आपकी रचना पढ़कर ।।

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  22. samvedanshilta ke charam aur param bindu ko sparsh karti prastuti,ati sundar

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  23. बेशक़ शब्दों का मायाजाल ही है कविताई। पर आप जिस तरह उन शब्दों से एक सुगढ़ आकृति निर्मित करती हैं, उसे देख कर मुंह से सिर्फ़ वाह निकलती है। बहुत ख़ूब दीदी, प्रणाम।

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