पहेली
आजकल मेरे शहर में
जब तब होता है
बादलों का जमावड़ा
बादल की बाँहों में होती है
लुका छिपी वर्षा की
खुश होती हूँ
जानती हूँ दोनों के संगम से
जल्दी ही पनपेंगी
कुछ नन्हीं बूंदें
वर्षा की कोख में
होगी कुछ हलचल
फिर कौंध उठेगी बिजली
उठते ही प्रसव पीड़ा के
जन्म लेंगी नन्ही नन्ही बूंदे
बज उठेंगी थालियाँ
उतरेंगी नन्ही परियां धरती पर
पर कुछ भी नहीं हुआ ऐसा वहां
उठीं अनगिनत उंगलियां
सबने एक ही स्वर में कहा
बाँझ हो गई वर्षा
सोच नहीं पाती हूँ मैं
नहीं है कोई जवाब मेरे पास
वर्षा बाँझ हो गई
या बादल नपुंसक.
जब नन्ही बूँदों ने जन्म ही नहीं लिया....तो आपकी सोच वाजिब है...सारा दोष वर्षा को ही क्यों?
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जवाब देंहटाएंअच्छा भाव ,अच्छी प्रस्तुति !
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वर्षा बाँझ हो गई या बादल नपुंसक
जवाब देंहटाएंप्रश्न समसामयिक
गहरे भाव ... कसूर वर्षा पे ही डाला जाता है ... पुरुष प्रधान जो समाज है ...
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
सचमुच अजीब पहेली है... .मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंदोष न वर्षा का है , न बादलों का,
जवाब देंहटाएंमनुष्य ने धरा को ही दूषित कर दिया है।
सुन्दर रचना।
जब धरती की पीड़ा दिखेगी..
जवाब देंहटाएंसही मे कोई जवाब नही है …………गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसिर्फ गरेहबान में झांकना काफी है!!!!
जवाब देंहटाएंbahut achchi kavita ...
जवाब देंहटाएंवाह! कहाँ तक पहुँच गयी आपकी सोच! बहुत गहन अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
अपनी सुविधा के लिए हम प्रकृति से खेल रहे हैं सो प्रकृति भी अब प्रतुत्तर देने लगा है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआज कल तो कम से कम बादल टैस्ट करा लेते हैं नहीं तो वर्षा ही बांझ करार दे दी जाती थी .... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना... बादल और वर्षा को आपने बेजोड़ चित्रित किया.. बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंकोमल भाव लिए बहुत ही संवेदनशील
जवाब देंहटाएंरचना और विचारणीय भी...
गजब...
अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसोचने को मजबूर करती रचना..
जवाब देंहटाएंपुरुष-प्रधान समाज में नारी का दर्द ....कितनी सहजता से आपने इसको शब्द दे दिए .....बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंकोख में पलेंगी कुछ बूंदें
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर कल्पना
सुंदर रचना
बधाई
आग्रह है पढ़ें "अम्मा"
http://jyoti-khare.blogspot.in
वर्षा बाँझ या बादल नपुंसक !
जवाब देंहटाएंअनोखे अनूठे नवीन बिम्ब !
यहाँ भी स्त्रीवाची पर ही उँगलियाँ उठी !!!
जवाब देंहटाएंनिशब्द....
जवाब देंहटाएंअद्दभुत पहेली है !
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