पर तुम न आये
होंठों ने कितने ही गीत गाये
आँखों ने सपने सजाये
कितने ही मौसम गुज़रे
कितने ही सावन आये
पर तुम न आये.
कभी सोचा तेरे होंठों की छू पायें
पर आस पास थे भौरों के साये
ये बात और है कि हमने
कुछ ज्यादा ही सपने सजाये
पर तुम न आये.
बिछुड़ गए अपने ही सब साए
आज मेरे ख्वाब ही ख्वाब होने की आये
शुक्र है तुम आज मेरी मजार पर आये
फूल चढाने न सही,
ले जाने तो आये.