रविवार, 3 फ़रवरी 2013

अनाथालय

अनाथालय

मन के अनाथालय में
विचारों की  गुत्थम गुत्था.
विडंबनाओ के शिक्षक,
जिज्ञासु द्वारपाल,
दुराग्रही कमल,
बालिग, नाबालिग कीचड़.
दुराचारी आत्मा,
जलतरंग सांसें.
सीली ह्रदय गति,
विश्वास - संशय के बीच
एक धूमिल रेखा.
कही अनकही
बतकही
बातों में प्रतिस्पर्धा.
एक पूर्वाभास
एक शून्य
एक नज़र
दिशाहीन गंतव्य
संचालिका
एक बालिका.      

23 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के सही रूप को दर्शाती
    बहुत कहीं गहरे तक उतरती ------बधाई रचना दी

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  2. मन के अंतर्द्वद्व को बेहतर शब्द मिले हैं ...!

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  3. मन के भावो को दर्शाती बेहतरीन प्रस्तुती।

    जवाब देंहटाएं
  4. जब नाथ की याद नहीं रहती है तो मन अनाथालय हो जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  5. बालिग , नाबालिग कीचड --
    शब्दों का एक दम नया प्रयोग !
    मनोभावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति।

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  6. अंतर्द्वंद के अहसासों की बहुत गहन अभिव्यक्ति...

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  7. मन यदि अनाथालय बन जायेगा तो ऐसा ही होगा..आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. अंतर्द्वंद को शब्दों में उतार दिया अओने ... बहुत खूब ...

    जवाब देंहटाएं
  9. सामयिक स्थिति का बढ़िया चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  10. जीवन के सही रूप को दर्शाती...बढ़िया रचना!

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  12. ऊहापोह, घुटन भरी... उलझी-उलझी मनःस्थिति...
    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत गहरे से खिंचकर आयी रचना।

    ऐसी रचना विचारों से नहीं, भावों से बनती है..फिर बहुत ही सापेक्ष चित्र..खोजनेवाला खो ही जाये..बधाई

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